आज करें भीमाष्टमी का व्रत, पापों से मुक्ति मिलेगी
सूर्य के उत्तरायण होने पर भीष्म पितामह ने अपने शरीर का त्याग किया था। इसलिए माघ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीमाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस तिथि को भीष्म निवारण तिथि के रूप में भी जाना जाता...
सूर्य के उत्तरायण होने पर भीष्म पितामह ने अपने शरीर का त्याग किया था। इसलिए माघ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीमाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। इस तिथि को भीष्म निवारण तिथि के रूप में भी जाना जाता है।
भीमाष्टमी के दिन कुश, तिल और जल से भीष्म पितामह का सच्चे मन से तर्पण करना चाहिए। इस व्रत को करने से पितृ दोष और सभी पापों से मुक्ति मिलती है। साथ ही वीर संतान की प्राप्ति होती है।
भीष्म सामान्य पुरुष नहीं थे, वे मनुष्य के रूप में देवता स्वरूप थे। उन्होंने ब्रह्मचार्य का कड़ा पालन करके योग विद्या द्वारा अपने शरीर को पुण्य बना लिया था। जीवन में विपरीत परिस्थितियों में भी अपने व्रत का कठोरता से पालन करने के कारण ही देवव्रत भीष्म के नाम से अमर हो गए।
कौन थे भीष्म पितामह
भीष्म पितामाह को बाल ब्रह्मचारी और कौरवों के पूर्वजों के रूप में जाना जाता है। इनके पिता राजा शांतनू और माता भगवती गंगा थीं। इनके जन्म का नाम देवव्रत था, इन्होंने पितृभक्ति के कारण ही आजीवन विवाह न करने और ब्रह्चारी रहने का व्रत लिया और उसे निभाया भी। भीष्म को इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था।
इसलिए महाभारत के युद्ध में अर्जुन के कई तीर लगने के बावजूद भीष्म 18 दिनों तक शरशय्या पर लेटे रहे लेकिन प्राण नहीं त्यागे। भीष्म को पता था कि माघ मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को शरीर त्यागने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी।