श्रीबालाजी की मूर्ति में एक चोट का चिह्न है, इस पर दवा लगाते हैं, जानें कैसे भक्त ने भगवान को चोर समझकर दंड दिया
Balaji: गाय को दूध न देते देख उस भक्त ने एक दिन छिपकर देखने का निश्चय किया और जब सामान्य मानव वेश में आकर भगवान दूध पीने लगे, तब उन्हें चोर समझ कर उसने डंडा मारा। उसी समय भगवान ने प्रकट होकर उसे दर्शन

भगवान श्रीवेंकटेश्वर को उत्तर भारतीय श्रद्धालु बालाजी कहते हैं। यह आंध्र प्रदेश में हैं। भगवान के मुख्य दर्शन तीन बार होते हैं। पहला दर्शन विश्वरूप दर्शन कहलाता है। यह प्रातकाल में होता है। दूसरा दर्शन मध्याह्न में तथा तीसरा दर्शन रात्रि में होता है। इन सामूहिक दर्शनों के अतिरिक्त अन्य दर्शन हैं, जिनके लिए शुल्क निश्चित हैं। इन तीन मुख्य दर्शनों में कोई शुल्क नहीं लगता है।
श्रीबालाजी का मंदिर तीन परकोटों से घिरा है। इन परकोटों में गोपुर बने हैं, जिन पर स्वर्ण कलश स्थापित हैं। स्वर्णद्वार के सामने तिरुमहामंडपम् नामक मंडप है। एक सहस्त्रस्तंभ मंडप भी है। मंदिर के सिंह द्वार नामक प्रथम द्वार को पडिकावलि कहते हैं। इस द्वार के भीतर बालाजी के भक्त नरेशों एवं रानियों की मूर्तियां बनी हैं।
प्रथम द्वार तथा द्वितीय द्वार के मध्य की प्रदक्षिणा को सम्पडि-प्रदक्षिणा कहते हैं। इसमें ‘विरज’ नामक एक कुआं है। श्रीबालाजी की पूर्वाभिमुख मूर्ति है। भगवान की श्रीमूर्ति श्यामवर्ण की है। वे शंख, चक्र, गदा, पद्म लिए खड़े हैं। यह मूर्ति लगभग सात फुट ऊंची है। भगवान के दोनों ओर श्रीदेवी तथा भूदेवी की मूर्तियां हैं। भगवान को चंदन और भीमसेनी कपूर का तिलक लगता है। भगवान के तिलक से उतरा यह चंदन यहां प्रसाद रूप में बिकता है। श्रद्धालु उसको अंजन के काम में लेने के लिए ले जाते हैं!
श्रीबालाजी की मूर्ति में एक स्थान पर चोट का चिह्न है। उस स्थान पर दवा लगाई जाती है। इस संबंध में एक कथा है। कहते हैं, एक भक्त प्रतिदिन नीचे से भगवान के लिए दूध ले आता था। वृद्ध होने पर, जब उसे आने में कष्ट होने लगा, तब भगवान स्वयं जाकर चुपचाप उसकी गाय का दूध पी आते थे। गाय को दूध न देते देख उस भक्त ने एक दिन छिपकर देखने का निश्चय किया और जब सामान्य मानव वेश में आकर भगवान दूध पीने लगे, तब उन्हें चोर समझ कर उसने डंडा मारा। उसी समय भगवान ने प्रकट होकर उसे दर्शन दिए और आशीर्वाद दिया। वही डंडा लगने का चिह्न मूर्ति में है।
डॉ. रवीन्द्र नागर
