इस व्रत के प्रभाव से बढ़ता है तेज, शत्रुओं पर मिलती है विजय
मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी के दिन मनाए जाने वाला चंपा षष्ठी पर्व भगवान शिव के मार्तंडाय स्वरूप को समर्पित है। इस दिन भगवान शिव की आराधना करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। जब भगवान कार्तिकेय अपने...
मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी के दिन मनाए जाने वाला चंपा षष्ठी पर्व भगवान शिव के मार्तंडाय स्वरूप को समर्पित है। इस दिन भगवान शिव की आराधना करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। जब भगवान कार्तिकेय अपने माता-पिता और छोटे भाई श्रीगणेश से नाराज होकर कैलाश पर्वत त्याग कर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुन जाकर निवास करने लगे, तब मार्गशीर्ष शुक्ल षष्ठी के ही दिन भगवान कार्तिकेय ने दैत्य तारकासुर का वध किया। इसी तिथि को भगवान कार्तिकेय देवताओं की सेना के सेनापति बने।
इस दिन भगवान कार्तिकेय पर नीले पुष्प अर्पित कर इन फूलों को तिजोरी में रखना चाहिए। ऐसा करने से घर में बरकत बनी रहती है। नीला धागा भगवान कार्तिकेय पर अर्पित करें और इसे अपनी बाजू पर बांधें। ऐसा करने से तेज में वृद्धि होती है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। भगवान कार्तिकेय को चंपा के पुष्प पसंद हैं, इसलिए इस दिन को चंपा षष्ठी कहते हैं। इस पर्व को बैंगन छठ भी कहते हैं। इस दिन प्रसाद के रूप में बाजरे की रोटी और बैंगन के भर्ते का वितरण किया जाता है। इस दिन तेल का सेवन नहीं करना चाहिए। चंपा षष्टी व्रत से भक्तों में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। यह त्योहार कर्नाटक और महाराष्ट्र में प्रमुखता से मनाया जाता है।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।