सक्सेस मंत्र: खुद पर भरोसा रखना अपने सपनों को सच करने की सबसे जरूरी शर्त है
खुद पर भरोसा रखना अपने सपनों को सच करने की जरूरी शर्त है और शुक्ला बोस ने इस कथन को सौ फीसदी सच साबित किया है। गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा मुहैया कराने के लिए परिक्रमा ह्यूमैनिटी फाउंडेशन की स्थापना...
खुद पर भरोसा रखना अपने सपनों को सच करने की जरूरी शर्त है और शुक्ला बोस ने इस कथन को सौ फीसदी सच साबित किया है। गरीब बच्चों को बेहतर शिक्षा मुहैया कराने के लिए परिक्रमा ह्यूमैनिटी फाउंडेशन की स्थापना करके उन्होंने समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी दिखाई, तो इसके लिए जमे-जमाए कॉरपोरेट करियर को छोड़कर असाधारण जज्बा भी दिखाया। शुक्ला ने वह किया जो वह करना चाहती थीं।
शानदार करियर छोड़ा
शुक्ला बोस ने कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय से तुलनात्मक साहित्य में स्नातकोत्तर किया है। एमबीए की डिग्री भी ली है। इसके बाद करीब ढाई दशक तक अपने बिजनेस करियर में कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ती रहीं। 1995 में उन्हें एंटरप्रिन्योर ऑफ द ईयर अवॉर्ड से नवाजा गया तो इसके एक साल बाद उन्हें भारत गौरव अवॉर्ड हासिल हुआ। साल 2000 में उन्हें वुमन ऑफ द ईयर अवॉर्ड प्रदान किया गया। लेकिन वह कुछ ऐसा करना चाहती थीं, जो दूसरों की जिंदगी को बेहतर बनाने में मददगार हो।
मकसद के लिए जीना
अपने मकसद के लिए शुक्ला ने शिक्षा क्षेत्र का रुख किया, लेकिन यह अचानक नहीं था। काफी पहले उनकी मां ने उन्हें सीख दी थी कि इनसान के जीवन का कोई मकसद होना चाहिए। इस सीख को याद करते हुए शुक्ला ने अपना शानदार कॉरपोरेट करियर छोड़कर 2003 में बंगलुरू में परिक्रमा ह्यूमैनिटी फाउंडेशन की नींव रखी। इसके तहत सबसे पहले उन्होंने एक स्थानीय झुग्गी में वहां के बच्चों का एक स्कूल खोला।
धीरे-धीरे नापी बड़ी दूरी
कोलकाता में अध्ययन के दौरान शुक्ला ने वहां की झुग्गियों में मदर टेरेसा के साथ कई साल तक काम किया था। साल 1976 में शादी होने के बाद वह भूटान चली गईं, जहां उनके पति नियुक्त थे। वहां उन्होंने भारतीय सैनिकों के बच्चों के लिए एक स्कूल खोला। स्कूल खोलने का उनका यह पहला अनुभव था। हालांकि भूटान में वह ज्यादा समय तक नहीं रहीं। परिक्रमा की स्थापना से पहले उन्होंने एक अंतरराष्ट्रीय एनजीओ के भारत चैप्टर की कमान भी संभाली। ये तमाम अनुभव परिक्रमा की स्थापना में मददगार साबित हुए।
शुक्ला ने जब परिक्रमा ह्यूमैनिटी फाउंडेशन शुरू किया था, तब उसमें सिर्फ 165 छात्र थे। आज यह बंगलुरु के अलावा कई अन्य शहरों तक पहुंच चुका है और इसके स्कूलों में 1,700 से अधिक छात्र हैं। कोरनेल यूनिवर्सिटी और आईआईएमबी के कोर्स में परिक्रमा पर एक अध्याय शामिल किया जा चुका है। शुक्ला को इस उपलब्धि के लिए फिक्की-फ्लो अपने वुमन एचीवर्स अवॉर्ड 2018 से सम्मानित कर चुका है। उन्हें टाइम्स पावर वुमन अवॉर्ड 2019 भी मिल चुका है।
गुरु मंत्र - आप अगर अपने जीवन में कुछ अलग करना चाहते हैं तो सपना देखने के साथ-साथ उसे पूरा करने का हौसला भी होना चाहिए।
काम की बात
व्यक्तिगत सफलता महत्वपूर्ण होती है। लेकिन आपकी सफलता उस समय और अहम हो जाती है, जब वह दूसरों के जीवन में भी सकारात्मक बदलाव लाने में सहायक बन जाए।