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सक्सेस मंत्र: बुरे वक्त में हिम्मत और मेहनत से करें सफलता का रास्ता तय

आज पंडित बिरजू महाराज कथक की दुनिया का नामचीन चेहरा हैं। नृत्य की तमाम विघाओं में निपुणता हासिल करने के साथ-साथ वह शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में भी अलग पहचान बनाने में कामयाब रहे हैं। लेकिन बिरजू...

सक्सेस मंत्र: बुरे वक्त में हिम्मत और मेहनत से करें सफलता का रास्ता तय
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीSun, 05 Jan 2020 08:42 AM
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आज पंडित बिरजू महाराज कथक की दुनिया का नामचीन चेहरा हैं। नृत्य की तमाम विघाओं में निपुणता हासिल करने के साथ-साथ वह शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में भी अलग पहचान बनाने में कामयाब रहे हैं। लेकिन बिरजू महाराज को यह शौहरत विरासत में नहीं मिली है। उन्होंने कर्ज और गरीबी का लंबा दौर झेलने के बाद इसे हासिल किया है। आइए जानते हैं आखिर क्या है इनका सक्सेस मंत्र।  
 
लखनऊ में हुआ जन्म-
बिरजू महाराज का जन्म लखनऊ के एक जाने-माने कथक घराने में हुआ था। उनके पिता अच्छन महाराज रायगढ़ के राजघराने में नर्तक थे। बचपन में बिरजू महाराज ने अपने चाचा लच्छू महाराज और शंभू महाराज से कथक का प्रशिक्षण लेना शुरू किया। सात साल की उम्र में उन्होंने पहली प्रस्तुति दी, जिसे काफी सराहा गया। मई 1947 में अच्छन महाराज के आकस्मिक निधन के बाद बिरजू महाराज और उनके परिवार का जीवन काफी दुश्वारियों में बीता।

कर्ज और गरीबी का लंबा दौर झेला-
नौ साल की उम्र में सिर से पिता का साया उठने के बाद बिरजू महाराज और उनके परिवार से नौकर-चाकर व घोड़ा-गाड़ी से लेकर घर-बार तक छिन गया। इस बीच, उनकी गुरुबहन कपिला वात्स्यायन लखनऊ पहुंचीं। वह बिरजू महाराज को लेकर दिल्ली चली आईं। यहां 13 साल की उम्र में उन्होंने कथक प्रशिक्षक के तौर पर 175 रुपये की तनख्वाह पर पहली नौकरी शुरू की। 1950 से 1990 के दशक के बीच वह दिल्ली के भारतीय कला केंद्र और कथक केंद्र से जुड़े रहे।

हिंदी फिल्मों में चला कथक का जादू-
1970 के दशक में बिरजू महाराज को सत्यजीत रे की फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी' के लिए पहली बार न सिर्फ नृत्य निर्देशन, बल्कि गाने लिखने और उसका संगीत तैयार करने का भी मौका मिला।

मिली वाहवाही-
1997 में ‘दिल तो पागल है', 2001 में ‘गदर एक प्रेम कथा', 2002 में ‘देवदास' और 2015 में ‘बाजीराव मस्तानी' के लिए फिल्माए गए उनके कथक सीक्वेंस को दर्शकों से खूब वाहवाही मिली। 2012 में ‘विश्वरूपम' में शानदार कोरियोग्राफी के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशक के राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया। 1998 में बिरजू महाराज ने ‘कथक केंद्र' से सेवानिवृत्ति लेकर खुद का डांस स्कूल ‘कलाश्रम' खोला। कला जगत में अभूतपूर्व योगदान के लिए वह पद्म विभूषण, साहित्य नाटक अकादमी और कालीदास सम्मान जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके हैं।

सीख-
-बुरे समय में हिम्मत हारकर नहीं बैठना चाहिए। 
-व्यक्ति अपनी मेहनत और लग्न से जीवन में सबकुछ हासिल कर सकता है। 
-सफलता निरंतर प्रयास करने से ही मिलती है।  

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