सक्सेस मंत्र : खुद पर विश्वास रखने से ही तय कर पाएंगे सफलता की मंजिल
संवेदनशील लोग अकसर विफल होने पर हिम्मत हार जाते हैं, उनका उत्साह और खुद पर टिका विश्वास टूटने लगता है। किसी एक चीज में मिली हार के बाद वो प्रयत्न करना ही बंद कर देते हैं। परिणामस्वरूप योग्यता होने के...
संवेदनशील लोग अकसर विफल होने पर हिम्मत हार जाते हैं, उनका उत्साह और खुद पर टिका विश्वास टूटने लगता है। किसी एक चीज में मिली हार के बाद वो प्रयत्न करना ही बंद कर देते हैं। परिणामस्वरूप योग्यता होने के बावजूद भी वह औसत या उससे भी निचले दर्जे के व्यक्ति बनकर रह जाते हैं। ऐसे लोगों को यह समझना चाहिए कि जीवन किसी एक चीज की सफलता पर आधारित नहीं होता। जीवन तो असफलताओं का सामना करते हुए अपने लक्ष्य को पाने का नाम है। व्यक्ति को कभी भी अपनी परिस्थितियों के आगे घुटने नही टेकने चाहिए बल्कि उनका डट कर मुकाबला करना चाहिए। आइए इस कहानी में जानते हैं ऐसे ही एक व्यक्ति के बारे में, जिससे काफी कुछ सीखने को मिल सकता है।
एक युवक ने नामी यूनीवर्सिटी से ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी की। उसमें स्वाभिमान कूट-कूटकर भरा था। उसने विश्वविद्यालय की शिक्षा भी अपने प्रयत्नों से, अपने श्रम से धन जुटाकर पूरी की और अब उसके पास कुछ भी पूंजी शेष न थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद वह नौकरी खोजने लगा। कई महीने तक उसे नौकरी नहीं मिली। वह निराश हो गया। पैसे खत्म हो जाने के कारण उसे दो दिन से खाना भी नहीं मिल पाया था और किराया न दे पाने की वजह से उसे अपना कमरा भी छोड़ना पड़ा। अब वह रात में पार्क की बेंच पर सोने लग गया था। उसे निराशा ने घेर लिया और अपना जीवन बेकार लगने लगा।
वह नौकरी के लिए जहां भी जाता, नौकरी न मिलती। अंत में निराश होकर उसने नौकरी ढूंढ़ना ही छोड़ दिया। उसे लगा कि उसके भविष्य में प्रकाश की एक किरण भी बाकी नहीं बची। उसके कपड़े भी फटने लग गए थे। पैसों की कमी और भूख के कारण उसकी दशा बहुत ज्यादा खराब हो गई थी। इस वजह से नौकरी के लिए इंटरव्यू में जाने का आत्मविश्वास भी उसमें नहीं बचा था।
काफी कोशिशों के बाद उसे एक रद्दी से होटल में बर्तन मांजने की नौकरी मिली। इससे उसे खाना तो जैसे-तैसे मिलने लगा, लेकिन सोने के लिए अब भी उसे बाग में पड़ी बेंच का सहारा लेना पड़ता था। एक रात वह अपने भविष्य की चिंता में लेटा हुआ था कि अचानक उसे आसमान में मोटे-मोटे लाल अक्षरों में लिखा दिखाई दिया– ‘अपने पर विश्वास रखो।’
सारी रात वह सो नहीं सका। व्याकुलता से वह सुबह होने की प्रतिक्षा करने लगा। सुबह होते ही उसने अपने मन में वह बात पुनः दोहराई – ‘अपने पर विश्वास रखो।’ वह उठा और नदी किनारे गया। वहां जाकर उसने हाथ-मुंह धोकर अच्छी तरह दाढ़ी बनाई। उसके बाद वह एक मोची के पास गया और उससे बूट पॉलिश मांगकर अपने जूतों को चमकाया। तब मन में दृढ-संकल्प के साथ नौकरी खोजने लगा।
अब वह किसी कार्यालय में जाता तो उसका स्वागत होता था। अब वह चोर नहीं लग रहा था। उसके वस्त्र विशेष अच्छे नहीं थे, पर उसके मुख पर आत्मविश्वास की झलक थी। वह जो कहता था, उससे भी आत्मविश्वास झलकता था। सौभाग्य से उसे नौकरी मिल गई। नौकरी उतनी अच्छी न थी, जितनी वह चाहता था या इच्छा करता था, लेकिन फिर भी काफी अच्छी थी। सबसे बड़ी बात यह थी की वह अपनी समस्या को सुलझाने में सफल हो गया था।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है :
कई बार व्यक्ति परिश्रम तो कर रहा होता है, परंतु उसे उसका फल प्राप्त नहीं होता। इसमें आश्चर्य करने की कोई बात नहीं, क्योंकि कभी-कभी व्यक्ति काम अपनी ही आशाओं व आकांक्षाओं के विरुद्ध कर रहा होता है। वह जिस वस्तु को प्राप्त करना चाहता है, परिश्रम उससे उल्टा कर रहा होता है।
हमें विपरीत परिस्थितियों में घबराना नहीं चाहिए, अपने पर विश्वास रखना चाहिए और धैर्यपूर्वक सही दिशा में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। ऐसा करने से हमें सफलता निश्चित ही मिलेगी, इसे कोई रोक नहीं सकता।