सक्सेस मंत्र : अगर इरादा पक्का हो तो हर मुश्किल को कर सकते हैं परास्त
निशक्तता केवल व्यक्ति की सोच में होती है क्योंकि हर किसी के जीवन में पहाड़ से ऊंची कठिनाइयां आती हैं। जिस दिन व्यक्ति अपनी कमजोरियों को ताकत बनाना शुरू कर देगा, हर ऊंचाई उसके इरादों के सामने बौनी...
निशक्तता केवल व्यक्ति की सोच में होती है क्योंकि हर किसी के जीवन में पहाड़ से ऊंची कठिनाइयां आती हैं। जिस दिन व्यक्ति अपनी कमजोरियों को ताकत बनाना शुरू कर देगा, हर ऊंचाई उसके इरादों के सामने बौनी साबित होगी।' अरुणिमा की जिंदगी में एक वक्त ऐसा आया था जब उन्हें सब बेचारी कहने लगे थे। बावजूद इसके उन्होंने मुश्किलों के सामने घुटने नहीं टेके और आज पूरा भारत उनका नाम गर्व से लेता है।
हादसे ने तोड़ दिया सपना
11 अप्रैल 2011 को हुए एक हादसे ने अरुणिमा की जिंदगी बदल दी। वह कहती हैं, ‘मैं उस हादसे वाली भयानक रात को कभी नहीं भूल सकती। उस रात जब मैं दिल्ली जा रही थी, तभी आधी रात को बरेली के पास कुछ बदमाश ट्रेन में चढ़े। मुझे अकेला समझकर वे मेरी चेन छीनने लगे। मैंने उनका डटकर सामना किया। झपटा-झपटी के बीच उन लोगों ने मुझे ट्रेन से नीचे फेंक दिया। इस हादसे में मैंने अपना बायां पैर गंवा दिया। 'ट्रेन हादसे के बाद जब अरुणिमा अस्पताल में भर्ती थीं, तब उनके रिश्तेदार, आस-पड़ोस के लोग व अन्य करीबी उन्हें देखकर रोने लगते।
चार वर्ष की उम्र में पिता का देहांत हो गया था
जब अरुणिमा चार वर्ष की थीं, तब उनके पिता का देहांत हो गया था। इसके बाद वह मां के साथ अंबेडकरनगर चली आईं। दरअसल, अंबेडकरनगर में अरुणिमा की मां को स्वास्थ्य विभाग में नौकरी मिल गई थी। हालांकि उनकी तनख्वाह परिवार की जरूरतें पूरी करने के लिए नाकाफी साबित होती थी। अरुणिमा ने जैसे-तैसे इंटर की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद एलएलबी में दाखिला लेकर खेल पर ध्यान देने लगीं।
कुछ अलग करने की चाह
स्पोर्ट्स में अरुणिमा की खासी दिलचस्पी थी। वह वॉलीबॉल और फुटबॉल में देश का नाम रौशन करना चाहती थीं। इन दोनों ही खेलों में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार भी जीते थे। अरुणिमा अंतरराष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी बनने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रही थीं। वह मैदान में दिन-रात अभ्यास करती नजर आती थीं। हालांकि उनकी किस्मत को शायद उनका अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में खेलना मंजूर नहीं था।