success mantra do not indulge in unnecessary arguing सक्सेस मंत्र : बहस की उलझनों से ना बहकें, एस्ट्रोलॉजी न्यूज़ - Hindustan
Hindi Newsधर्म न्यूज़success mantra do not indulge in unnecessary arguing

सक्सेस मंत्र : बहस की उलझनों से ना बहकें

रोज ही घर-बाहर ऐसे लोगों से साबका पड़ता है, जो बेबात बहस करते हैं। उन बहसों का हिस्सा बन कर आप अपने आपको ठगा महसूस करते हैं। न वहां तर्क चलता है, न कोई कायदा। आप अपना नजरिया तो क्या कर सामने रख पाते...

जयंती रंगनाथन नई दिल्ली Tue, 26 March 2019 03:36 PM
share Share
Follow Us on
सक्सेस मंत्र : बहस की उलझनों से ना बहकें

रोज ही घर-बाहर ऐसे लोगों से साबका पड़ता है, जो बेबात बहस करते हैं। उन बहसों का हिस्सा बन कर आप अपने आपको ठगा महसूस करते हैं। न वहां तर्क चलता है, न कोई कायदा। आप अपना नजरिया तो क्या कर सामने रख पाते हैं, उलटे ले आते हैं दिनभर की सिरदर्दी और खीझ। 

ओशो कहा करते थे कि मैं दो किस्म के व्यक्तियों से बहस करने से डरता हूं, एक अत्यधिक बुद्धिमान और एक अत्यंत मूर्ख। दोनों के साथ दिमाग खपाने से हाथ कुछ नहीं आता।

मुझे बचपन में अपनी अम्मा की कही एक तमिल कहावत याद आती है, जिसका मतलब था कि अतार्किक लोगों से पांच फीट की दूरी बना कर चलो। मुझे याद है, आठवीं में थी तो मेरे साथ पढ़ने वाली ललिता ने मेरे यह कहने पर कि मेरी नानी के पास हीरे के कान के बुंदे हैं, पूरा दिन यह कह कर मेरा दिमाग खराब कर दिया कि वो हीरा हो ही नहीं सकता। वह मानने को तैयार ही नहीं थी कि हीरे के गहने हो सकते हैं। मैं उससे बहस करती रही। गुस्सा हुई, चिल्लाई भी, उससे दूर बैठने की कोशिश भी की। पर उसने मेरा पीछा नहीं छोड़ा। वह अड़ी रही।
स्कूल से घर पहुंची, तो मेरा मूड उखड़ा हुआ था। 

अम्मा ने मेरी बात सुन कर मुझे उम्रभर की यह सीख दे दी थी। इसका पालन करना आसान नहीं था। पर उम्र के साथ-साथ यह समझ आ गई कि किसी के साथ बहस करते समय अगर पांच सेकेंड बाद समझ आ जाए कि सामने वाला आपके तर्क न समझ रहा है, न सुन रहा है तो आपको उसी समय बहस पर पूर्ण विराम लगा देना चाहिए। हो सकता है, आपके चुप रहने पर भी वह चुप ना रहे। अड़ा रहे, आपको उकसाए कि आप उसकी बात से सहमत हों, तो समझ लीजिए, यह बहस नहीं, कुछ और है। 

अमेरिकी लेखक माइकल पी वॉटसन का एक प्रसिद्ध कोट है, ‘आप एक नकारात्मक व्यक्ति के साथ कोई भी तर्क कभी जीत नहीं सकते। वो वही सुनते हैं, जो वे सुनना चाहते हैं, और उतना ही, जितना वे जवाब देने के लिए जरूरी समझते हैं।’ सकारात्मक बहस में दो व्यक्ति अपनी बात रखते हैं, भले ही वे एक-दूसरे से सहमत ना हों। पर इस बहस में विचारों की गुंजाइश होती है। दोनों एक-दूसरे से सीखते हैं और अपनी बात दृढ़ता से रखते हैं। इसके विपरीत नकारात्मक बहस में एक व्यक्ति ही बोलता रह जाता है। वह दूसरों की सुनना नहीं चाहता। अपने सिवा किसी को सही नहीं समझता। मनोवैज्ञानिक सलाहकार और लेखक टॉड काशडन कहते हैं, ‘मैं अतार्किक बहस करने वालों को बीमार मानता हूं। उनके भीतर हीन भावना या गुस्सा है, जिसे वे इस तरह बाहर लाते हैं। ऐसे लोगों को चिकित्सकीय सलाह की जरूरत होती है।’ 

अकसर ऐसे बहस करने वाले अपनी बात जोर से कहते हैं, चिल्लाते हैं, हिंसा पर उतर आते हैं। इनको उस समय समझाना बेकार है। आप केवल बहस का हिस्सा न बनकर अपने आपको बचा सकते हैं। बेकार की बहस में उलझने से सिर्फ समय ही खराब नहीं होता, बल्कि रिश्ते भी बिगड़ सकते हैं। कई बार दोनों पक्ष अपनी जगह सही होते हैं। पर बहस के समय अहम आड़े आने से दोनों पूरी तरह अपने आपको सही, दूसरों को गलत साबित करने में लग जाते हैं। लेखिका कैरॉल टेविस कहती हैं, ‘मौन बहुत तेज हथियार है। अगर बहस के दौरान सामने वाला व्यक्ति तर्कों की बौछार किए जा रहा हो, तो उस समय आपके पास बस एक ही हथियार रह जाता है मौन का। आप कुछ ना बोल कर जीत जाते हैं।’

किसी बातचीत में अपनी बात सामने ना रख पाना कई बार बहुत हताश करता है। हो सकता है इससे आपके अंदर हीन भावना आ जाए, आत्मविश्वास कम होने लगे। पर उस समय तुरंत अपने दिमाग को यह संकेत देना जरूरी है कि आप कोई परीक्षा नहीं दे रहे, जहां आपको अच्छे नंबरों से पास होना जरूरी है। अपनी बात को सही तरीके से सबके सामने रखने के और भी कई मंच हैं। एक बहस में अगर आप अपने तर्क नहीं साबित कर पाएं, तो इस बात को लेकर देर तक उलझे न रहें।

जानें धर्म न्यूज़ , Rashifal, Panchang , Numerology से जुडी खबरें हिंदी में हिंदुस्तान पर| हिंदू कैलेंडर से जानें शुभ तिथियां और बनाएं हर दिन को खास!