सक्सेस मंत्र: सही फैसले लेने से आसान हो जाती है मंजिल की राह
हम हर दिन फैसले लेते हैं। तो, हमें यह पता भी होना चाहिए कि सही फैसला कैसे लिया जाता है। अगर इसका ज्ञान हमें हो जाए तो जीवन के हर क्षेत्र में सफलता की राह आसान हो सकती है। जब फैसला लेने की घड़ी आती...
हम हर दिन फैसले लेते हैं। तो, हमें यह पता भी होना चाहिए कि सही फैसला कैसे लिया जाता है। अगर इसका ज्ञान हमें हो जाए तो जीवन के हर क्षेत्र में सफलता की राह आसान हो सकती है।
जब फैसला लेने की घड़ी आती है तो सही फैसला लेना एक चुनौती होता है। फिर भी ज्यादातर लोग अपने फैसले अपनी पुरानी प्रतिक्रियाओं के आधार पर लेते हैं कि तब ऐसा होने पर उन्होंने क्या कदम उठाया था। उनका दिमाग एक ही तरीके से काम करने या प्रतिक्रिया देने का आदी हो जाता है यानी उनका दिमाग नई और अचानक आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं होता।
फैसला हमारे कार्यों को स्वरूप देता है, इसीलिए कुछ न कुछ चुनाव हमें करने ही पड़ते हैं। जैसा कि कहा गया है शुरुआत महत्वपूर्ण होती है, उसके बाद उठाए जाने वाले कदम भी उतना ही महत्व रखते हैं। उसके बाद उठाए जाने वाले कदमों पर पकड़ होना काफी जरूरी है, वरना आगे उठाए जाने वाले कदम डगमगा सकते हैं और भरोसेमंद भी नहीं होते। महत्वपूर्ण कार्यों को करने की एक प्रक्रिया होती है।
भारतीय मूल के प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक और आधुनिक मोटिवेशनल गुरु दीपक चोपड़ा ने 7 कदम बताए हैं जो नए काम करने की प्रक्रिया को आसान बना देते हैं। यह हैं :
नए काम को शुरू करने की प्रक्रिया
1. खुद के सामने चुनौती रखना
2. स्थिति का आकलन करना
3. परामर्श लेना
4. फैसला करना
5. काम शुरू करना-इस दिशा में कदम उठाना
6. परिणाम हासिल करना
7. परिणाम के लिए जवाबदेही स्वीकार करना
इन सात कदमों को आपके सामने रखते हुए मैं यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि इस तरह के कार्य के मॉडल की अपेक्षा वास्तविक दुनिया में काम ज्यादा कठिन होते हैं। वास्तविक दुनिया में चुनौतियां एक सीधी लकीर में माल गाड़ी के डिब्बों की तरह एक-एक करके सामने नहीं आतीं। हर दिन में कई चीजों का आकलन करना पड़ता है, लोगों से सलाह लेनी पड़ती है और यह सिलसिला निरंतर चलता रहता है।
एक के बाद एक आने वाली स्थितियां और उलझे हुए हालात का मतलब यह है कि आप किसी एक अकेले फॉर्मूले पर निर्भर नहीं रह सकते। जिस किसी ने भी महान योद्धाओं या नायकों की जीवनी पढ़ी है, उन्हें तुरंत पता चल जाता है कि ‘युद्ध का कोहरा’, ‘नेतृत्व का कोहरा’ भी हो सकता है। यानी उलझी हुई परिस्थितियों में अंतरात्मा से बातचीत करने से ही सही राह पाई जा सकती है। खास महत्व वाले ज्यादातर हालात में यह स्थिति समूह के जागरूक फैसले में बदल जाती है, जहां फैसला लेने वाले के पीछे एक बेहतर टीम का होना, सही समय पर प्रभावी कदम उठाने के रूप में सामने आता है।