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सक्सेस मंत्र: सफलता पाने के लिए कोई भी काम करो, लगातार करो

हिन्दी के उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द ने लिखा है कि अतीत चाहे दु:खद क्यों न हो, उसकी स्मृतियां सुखद होती हैं, लेकिन वे हमारे किस काम की? हमारे विचार से सुखद स्मृतियों का लाभ यह होता है कि वे हमारे मन...

सक्सेस मंत्र: सफलता पाने के लिए कोई भी काम करो, लगातार करो
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीWed, 11 Dec 2019 11:23 PM
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हिन्दी के उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द ने लिखा है कि अतीत चाहे दु:खद क्यों न हो, उसकी स्मृतियां सुखद होती हैं, लेकिन वे हमारे किस काम की? हमारे विचार से सुखद स्मृतियों का लाभ यह होता है कि वे हमारे मन में वर्तमान के प्रति अंसतोष पैदा करके स्वर्णिम भविष्य के निर्माण की प्रेरणा प्रदान करती हैं। पढ़ें अफ्रीका की लेराटो की कहानी- 

वह कभी नहीं जान पाईं कि उनके असली पिता कौन थे, उनके जन्म से पहले ही वह उनकी मां को छोड़़कर जा चुके थे। मां ने दूसरे शख्स से शादी कर ली थी। लेराटो महोई ने अपना पूरा बचपन इन सवालों के बीच काटा कि उनके जैविक पिता जिंदा हैं भी या नहीं? अगर वह उनके साथ होते, तो क्या वह भी उसी तरह उनका उत्पीड़न करते, जैसा सौतेले बाप ने किया? अफ्रीका की गरीब बस्तियों के बच्चों की कहानी लेराटो से बहुत जुदा नहीं होती।

लेराटो का परिवार दक्षिण अफ्रीका के गाउतेंग सूबे में रहता था। मां लोगों के घरों में काम करतीं, ताकि घर का गुजारा हो सके। दूसरे पति की लापरवाही और बढ़ती ज्यादतियों के कारण अंतत: उनको उसे छोड़ना पड़ा और फिर चार बच्चों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी अकेले उनके कंधों पर थी। गुरबत और तंगी के बीच मां ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की कि अपने बच्चों की तकलीफें कम कर सकें। लेराटो के हिस्से कभी स्कूल ड्रेस नहीं आई। रोज सुबह जब वह किसी बच्चे को पूरी ड्रेस में देखतीं, तो उन्हें अपने भीतर कुछ टूटता-दरकता हुआ एहसास होता, मगर इस बेबसी और उदासियों में लिपटी हुई वह एक के बाद दूसरी जमात पार करती गईं।

प्राइमरी शिक्षा के आखिरी साल में नियमों के मुताबिक उन्हें एक निजी स्कूल में पढ़ने का मौका मिला। मगर लेराटो वहां खुद को अलग-थलग पातीं, इसलिए उन्होंने स्कूल से छुट्टी करनी शुरू कर दी। कई बार तो स्कूल के शिक्षक घर आकर उनको ले जाते थे। इस बात ने लेराटो के आत्म-विश्वास को मजबूत किया। उन्हें लगा कि उनमें कुछ तो है। उन्होंने मन लगाकर पढ़ना शुरू कर दिया। मगर हाईस्कूल की पढ़ाई की चुनौतियां ज्यादा कठिन थीं। लेराटो को इसके लिए रोजाना इवाटोन शहर जाना पड़ता। करीब तीन घंटे पैदल चलने के बाद वह अपने स्कूल पहुंच पाती थीं। हालांकि अब तक उन्हें यह एहसास हो गया था कि इन्हीं कठिन परिस्थितियों के बीच उनको अपना एक मुकाम बनाना होगा।

लेराटो जब 16 की हुईं, तो उन्हें एक कार्यक्रम में कविता पढ़ने का अवसर मिला। उनकी कविता काफी सराही गई और उसके बाद तो उन्हें अक्सर रेडियो पर बोलने का मौका मिला। इन अवसरों ने उन्हें सुनहरे भविष्य के सपने दिए। अब वह अपने समुदाय में कुछ-कुछ पहचानी जाने लगी थीं, मगर वहीं पर लड़कों का एक समूह था, जो लेराटो पर बुरी नजरें गड़ाए था। एक दिन वे उन्हें उठा ले गए और सबने उनके साथ दुष्कर्म किया। वह बुरी तरह टूट गई थीं। लेराटो कहती हैं- ‘ऐसा लगा, जैसे मुझसे मेरी कुछ शक्तियां और मेरी आजादी लूट ली गई है।'

वह काफी दिनों तक इस बात को लेकर सदमे में रहीं कि अपने ही समुदाय के बीच वह सुरक्षित नहीं हैं। इस भावनात्मक-मानसिक आघात से उबरने के लिए लेराटो को काफी समय और पैसे खर्च करने पडे़। उनके साथ दुराचार करने वाले सभी लड़के सलाखों के पीछे भेज दिए गए। मगर लेराटो ने तय किया कि उनका अतीत चाहे जितना दागदार रहा हो, वह अपने भविष्य पर कोई धब्बा नहीं पड़ने देंगी। वह कहती हैं- ‘मैंने तभी फैसला किया कि खामोशी नहीं ओढ़ूंगी। और एक बार जब यह तय कर लिया, तो फिर दूसरों की मदद करना मेरे लिए आसान हो गया।'

वह ‘एक्टिवेट' नामक संस्था से बतौर ट्रेनर जुड़ गईं और फिर बलात्कार व अन्य प्रकार के शोषण-उत्पीड़न के शिकार लोगों को नई शुरुआत के लिए प्रेरित करने लगीं। लेराटो दक्षिण अफ्रीका में महिलाओं और बच्चों के अधिकारों के लिए काम कर रही चर्चित संस्था ‘हैंड्स अप फॉर हर' की एंबेसडर के तौर पर भी काफी सक्रिय हैं। उनकी अपनी आजमाइशों ने उनके शब्दों में ऐसा असर पैदा किया है कि अब जगह-जगह से उन्हें भाषण के लिए न्योता मिलता है। अपने समुदाय की लड़कियों को कुछ नया, कुछ अलग करने को प्रोत्साहित कर रही लेराटो 120 से अधिक लड़कों की फुटबॉल टीमों का प्रबंधन भी देखती हैं, ताकि इन लड़कों को फुटबॉल के जरिए उनके स्याह अतीत से वह मुक्ति दिला सकें।

लेराटो हताश अफ्रीकी युवाओं में ऊर्जा पैदा करने के लिए कहती हैं कि हमारा अतीत जैसा भी रहा हो, उसके पीछे की मजबूरियां चाहे जो भी रही हों, हमें अपनी बच्चियों को छोड़ना नहीं है। पलायनवादी लोग कहेंगे कि बचपन के अभाव से आप कभी नहीं उबर सकते, या जिसने अपना बचपन गंवा दिया, उसने अपनी जिंदगी गंवा दी, लेकिन हमने ज्ञान संबंधी ऐसा विज्ञान अपने पक्ष में पाया है, जो हमें यह बताता है कि हमारा मस्तिष्क बचपन की उम्र के बाद भी बदलाव की काफी क्षमताएं रखता है। वह युवाओं को प्रेरित कर रही हैं कि खराब स्कूली शिक्षा भले आपको बेहतर शिक्षा प्राप्त अपने हमउम्रों से डिग्री में पीछे कर देती हो, मगर इनोवेशन, छोटे-छोटे कारोबार करने में आप अपने दिमाग का इस्तेमाल कीजिए। उनका मंत्र है- हम नौजवान हैं, हम उम्मीद की पीढ़ी हैं।

(प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह)

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