एक जगह एक भिखारी सड़क के किनारे बैठकर बीस-पच्चीस वर्षों तक भीख मांगता रहा। फिर एक दिन उसे मौत आ गई और वो मर गया। जीवन भर उसकी यही कामना रही कि वो भी एक दिन सम्राट बन जाएं। लेकिन जिंदगीभर वो हमेशा दूसरों के आगे हाथ फैलाकर, एक-एक पैसा मांगता रहा। मांगने की आदत जितनी बढ़ती है, आदमी उतना ही बड़ा भिखारी हो जाता है। लेकिन इस भिखारी के साथ मांगने की वजह से इतना जरूर हुआ कि पच्चीस वर्ष पहले वह छोटा भिखारी था, पच्चीस वर्ष बाद पूरे नगर में प्रसिद्ध भिखारी हो गया था।
गांव के लोगों ने उसका अंतिम संस्कार करवा दिया। गांव वालों ने वह जगह साफ कराने की सोची, जहां वह बैठा रहता था। गंदे कपड़े, टीन-टप्पर, बर्तन-भांडे सब सामान फिंकवा दिए। खोद-खादकर वहां की जमीन समतल कराने लगे। लेकिन जब मिट्टी खोदी तो सब हैरान हो गए। भीड़ जुटने लगी। वह भिखारी जिस जगह बैठा था, वहां बड़े खजाने गड़े हुए थे। वह सम्राट हो सकता था, लेकिन वह उन लोगों की तरफ हाथ पसारे रहा, जो खुद ही भिखारी थे। गांव के लोग आपस में बातचीत करते कह रहे थे, बड़ा अभागा था!
तभी वहां से एक संत गुजरे। उन्होंने हंसकर कहा कि उस अभागे की फिक्र छोड़ो। दौड़ो अपने घर, अपनी जमीन खोदो। कहीं वहां कोई खजाना तो नहीं? संत बोले- खजाना वहीं होता है जहां आप होते हैं। पर अपनी जमीन देखे बिना हम दूसरों से ही मांगते रह जाते हैं।
प्रेम के बड़े खजाने अपने भीतर होते हैं, लेकिन हम दूसरों से मांगते रह जाते हैं कि हमें प्रेम दो! पत्नी पति से मांग रही है, मित्र मित्र से मांग रहा है कि हमें प्रेम दो! जिनके पास खुद ही नहीं है, हम उनसे मांग रहे हैं! भिखारी भिखारियों से मांग रहे हैं! लेकिन अपनी जमीन, जिस पर हम खड़े हैं, उसे खोदने की फिक्र कोई नहीं करता।
तीन सीख-
1-जीवन में कोई भी बदलाव लाना आसान नहीं होता। जीवन में बदलाव करते समय व्यक्ति को कई तरह के डर सताने लगते हैं। हमें अपने ही खोल में बने रहने में भलाई नजर आती है या फिर हम हर चीज को अपने काबू में करने में जुटे रहते हैं। पर हर चीज को काबू करने की जिद क्यों? कहा गया है कि जीवन प्रक्रिया पर विश्वास रखो, दिल की सुनो, भरोसा रखो।
2-बदले की भावना आसानी से साथ नहीं छोड़ती। मन जैसे को तैसे का सबक सिखाने को उतारू रहता है। किसी ने गाली दी तो हमने भी बुरा बोल दिया। किसी ने हमारे साथ गलत किया, हमने भी बदला ले लिया। सबसे आसान भी यही होता है। लेखिका लोरी डेशने कहती हैं कि समझदार वो है जो दुख देने वाले को वापस दुख देने की बजाय उसके हालात को समझकर प्रतिक्रिया देता है।
3-हम जो हैं, वह यूं ही नहीं हैं। हमारे मूल्य हमें गढ़ते हैं, हमें खास बनाते हैं, हमें आसपास को देखना सिखाते हैं। ये मूल्य कुछ भी हो सकते हैं, पैसा, परिवार, दोस्ती, सुविधाएं, ईमानदारी, दया... । हमें वही फैसले खुशी देते हैं, जो हमारे मूल्यों से जुड़े होते हैं। अल्बर्ट आइंस्टीन ने यहां तक कहा है, ‘सफलता के पीछे न भागें, मूल्यों का पीछा करें।’