प्रकाश पर्व पर विशेष: सच्चे मन वालों को ही परम समाधान मिलता है
सच्चा मन ध्यान से मिलता है। जहां आप सिर्फ परमात्मा के हो जाते हो। दुनिया की दुनियादारी से एकदम दूर। जहां न रुपया-पैसा है, न छल-कपट। जहां केवल परमात्मा के नाम, सुमिरन, ध्यान में ही आनंद आता है। जिसे यह

श्री गुरु नानकदेवजी के पावन प्रकाश पर्व पर सबसे जरूरी बात यह है कि हम गुरुदेव के उपदेश को समझें। श्रीगुरु नानक जिस राम से प्रीति करते हैं, वह राम निर्गुण है। निर्गुण मतलब गुणरहित। गुणरहित का अर्थ है कि जिसमें रज, तम, सत्त्व ये तीनों गुण नहीं हैं। ये तीनों गुण प्रकृति के हैं और इस प्रकृति का आधार-अधिष्ठान ब्रह्मसत्ता है। इसी ब्रह्मसत्ता को गुरु बाबा कहीं पर उसे निर्गुण कहते हैं, कहीं पर निरंकार कहते हैं, कहीं पर परब्रह्म कहते हैं। कहीं पर सत् कहते हैं, कहीं पर आनंद कहते हैं।
श्री गुरु महाराज अपने एक शबद में कहते हैं— ‘निरगुण रामु गुणह वसि होइ’ तीनों गुण निर्गुण परमात्मा के ही वश में हैं। ‘आपु निवारि वीचारे सोइ’ जिस झूठे अहंकार को तुमने खड़ा किया है, इस झूठी ‘मैं’ को निवृत्त करो। निर्गुण राम की प्राप्ति उसी को होगी, जो इस ‘मैं’ को निकाल दे और आत्मतत्व का चिंतन करे। अगर तत्व का विचार नहीं करोगे तो तुम इन तीन गुणों में फंसकर, संसार के साथ जुड़कर शरीर और मन के दास बनकर रह जाओगे।
गुरुदेव आगे कहते हैं— ‘ना मनु मरै ना कारजु होइ’ यह मन कभी मरता नहीं है, इसलिए मन से उत्पन्न हुई चीजें भी कभी खत्म नहीं होती हैं। संसार की कोई भी इच्छा करने पर उसके फलस्वरूप एक और इच्छा उत्पन्न होती रहती है। ‘मन वस दूत्ता दुरमत दो’ तुम्हारा मन द्वैतभाव में फंसा है और तुम्हारी मति गुरुमति न होकर दुर्मति हो गई है। इस दुर्मति ने तुमको द्वैतभावना में डाल दिया है। तुम अपने आपको और दुनिया को भी परमात्मा से अलग देखते हो। तुम्हारी मैं को और परमात्मा को अलग मानते हो।
गुरु बाबा कहते हैं कि अगर आत्मतत्व का विचार करोगे तो तुम्हारा मन जान जाएगा और फिर गुरु और तुम एक हो जाओगे। देखिए, इसी अज्ञानी मन ने तुमको परमात्मा से जुदा किया। ज्ञानी मन तुमको अपने ही परमात्मस्वरूप का अनुभव करा देता है। अगर यह बात समझ में आ जाए कि आनंदस्वरूप परमात्मा मेरे ही भीतर है, तो क्या तुम सुख पाने के लिए दुनिया की गुलामी करोगे? तुम्हारे मन को परमात्मा का सहारा तो दिखता भी नहीं है, इसलिए जब तुम सुमिरन करने बैठते हो, तब भी तुम्हें दुनिया ही याद आती रहती है। मन संसार में ही नहीं, बल्कि पूरा संसार ही तुम्हारे मन में बसता है। ‘मन भूलो सिर आवे पार’ मन अपने परमात्मस्वरूप को भूल गया, इसलिए मन सारी दुनिया की चिंता करता रहता है।
गुरुदेव कहते हैं— ‘मन माने हरि एक ओंकार’ अगर मन मान जाए तो उस ओंकारस्वरूप परमात्मा के साथ तुम्हारे मन की सुरति जुड़ जाएगी। जो मन हरि का भजन करता है, जिसकी रसना पर हरि का भजन हो, उसके मन में तृप्ति आ जाती है। परम समाधान तभी प्राप्त होता है, जब तुम्हारा मन ध्यान की अवस्था में होता है। तुम्हारा मन तुम्हें मूर्ख बनाकर कहता है कि यह होगा तो सुख होगा, वह होगा तो सुख होगा। चीजें तो हो जाती हैं, पर सुख फिर भी नहीं होता। मकान, सोना-चांदी, पत्नी, पुत्र, मां-बहन, बेटी, सबकी चिंता कर-करके हार जाता है। जब तक संपत्ति को एकत्र करने के लिए दिमाग को लगाएगा, तब तक मन में विकार ही चलते रहेंगे, मन में हर्ष और शोक उठते रहेंगे।
गुरुदेव कहते हैं कि अगर सहजता से सुख चाहिए तो ‘जपु हिरदय मुरार’, उस मुरारी का भजन अपने दिल में करते रहिए। बिना नाम-सुमिरन के तुम्हारा मन दुखों का निवास हो जाएगा। ऐ मूढ़ मनमुख! चित्त में माया का ही वास रहेगा। गुरुमुख वही है, जिसने अच्छे, नेक कर्म करके, पुण्यकर्म करके सत्संग को पाया हो, सत्संग से ज्ञान प्राप्ति की हो। जैसे कर्म तुम शुरू से करते रहे हो, वैसे ही तुमको फल मिलेंगे। अगर आपका मन हमेशा पैसा-पैसा करता रहा हो तो आगे भी उसी की दौड़ लगाओगे। पर जब दिन-रात तुम्हारे मन में यही आराधना चले कि परमात्मा का नाम मिले, ज्ञान मिले, तब तुम्हारा जीवन कुछ और ही हो जाएगा। जिसका मन सच्चा है, उसको मैली चीज अच्छी नहीं लगती है। जिसे नाम, सुमिरन, ध्यान, स्वाध्याय, सेवा इत्यादि में आनंद आता है, उसी का मन सच्चा है। मन को प्रभु प्यारे की बातें सुनकर, कीर्तन करके, संतों के अनमोल वचन सुनकर परम आनंद की अनुभूति होती है। ‘नानक गुरुमुख हरि गुण गावै’ गुरु पातशाह जी कह रहे हैं कि मैं नानक तो हमेशा हरि के गुण गाता रहता हूं, मेरा सुख तो इसी में है।
श्री गुरु नानकदेवजी की वाणी को पढ़ने पर हम जान पाते हैं कि इसमें सिवाय ज्ञान, प्रेम, भक्ति के और कुछ नहीं मिलता है। इसमें केवल परमेश्वर की स्तुति मिलती है, प्रभु का प्यार मिलता है। फिर कहीं-कहीं गुरुदेव ऐसे-ऐसे मीठे वचन कहते हुए दुनियावी उदाहरणों द्वारा ईश्वरीय प्रेम को समझाने की कोशिश करते हैं। यह शबद भी उनके इसी ज्ञान-विचार का एक बहुत ही सुंदर स्वरूप है। श्रीगुरु नानकदेवजी द्वारा दिए इस ज्ञान का विचार करना ही सच्चे अर्थों में गुरपूरब मनाना है।
