Hindi Newsधर्म न्यूज़Shradh 2023: Shraddha can be performed at home also know whose Shraddha when to perform and the complete method of Shraddha

Shradh 2023: घर पर भी हो सकता है श्राद्ध, जानें किसका श्राद्ध कब करें और श्राद्ध की संपूर्ण विधि

Pitra Paksha 2023: घरों में सामान्य रूप से पिंडदान किया जा सकता है। जो व्यक्ति गया में पिंडदान नहीं कर सकेंगे, वह अपने पितरों का घर पर ही एकोदिष्ट श्राद्ध कर सकते हैं।

Shrishti Chaubey लाइव हिन्दुस्तान, भभुआWed, 4 Oct 2023 01:16 AM
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Shradh Kaise Kare: शुक्रवार से आरंभ हो गयी है तर्पण की प्रक्रिया, जो अमावस्या तक यानी 16 दिनों तक चलेगी। पूर्णिमा को पहला श्राद्ध हो चुका है। प्रथम दिन को शुद्धि दिवस के रूप में जाना जाता है। इसी दिन से तर्पण की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है, जो अमावस्या तक यानी 16 दिनों तक चलेगी। ज्योतिषाचार्य पंडित वागीश्वरी प्रसाद द्विवेदी ने बताया कि जो व्यक्ति गया में पिंडदान नहीं कर सकेंगे, वह अपने पितरों का घर पर ही एकोदिष्ट श्राद्ध कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि घरों में सामान्य रूप से पिंडदान किया जा सकता है। गया में पार्वण श्राद्ध होता है।

उन्होंने बताया कि इस विधि से हर पितर को एक पिंड दिया जाता है। घर पर एकोदिष्ट श्राद्ध पिता की तिथि पर किया जाता है, जबकि अन्य पितरों को तर्पण किया जाता है। पिता के ही पिंड में सभी पितर सहभागी हो जाते हैं। पितरों की पूजा करने से आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, धान्य की समृद्धि होती है, जो मृत आत्माओं का श्राद्ध नहीं करते, उनके पितर सदैव नाराज रहते हैं। देवी-देवताओं की आराधना के साथ ही स्वर्ग को प्राप्ति होने वाले पूर्वजों की भी श्रद्धा और भाव के साथ पूजा व तर्पण किया जाता है।

विद्वान डॉ. विवेकानंद तिवारी कहते हैं कि धार्मिक मान्यता के अनुसार, पितरों के प्रसन्न होने पर ही देवी-देवता प्रसन्न रहते हैं। पितरों के लिए समर्पित श्राद्धपक्ष भादों पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक मनाया जाता है। परमपिता ब्रह्मा ने यह पक्ष पितरों के लिए ही बनाया है। जिन प्राणियों की मृत्यु के बाद उनका विधिनुसार श्राद्ध नहीं किया जाता है, उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। जो भी अपने पितरों का श्राद्ध नहीं करते हैं, उन्हें पितृदोष का सामना करना पड़ता है। पितृदोष होने पर जातकों के जीवन में धन और सेहत संबंधी कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ता है। पितरों का तर्पण करने से उन्हें मृत्युलोक से स्वर्गलोक में स्थान मिलता है।

पितृपक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व
उन्होंने बताया कि पितृपक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है। हालांकि हर महीने की अमावस्या तिथि पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण किया जा सकता है। लेकिन, पितृपक्ष के 15 या 16 दिनों में श्राद्धकर्म, पिंडदान और तर्पण करने का अधिक महत्व माना जाता है। इन दिनों में पितर धरती पर किसी न किसी रूप में अपने परिजनों के बीच में रहने के लिए आते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध करने के कुछ खास तिथियां भी होती हैं।

श्राद्ध-विधि
आचार्य अत्रि भारद्वाज बताते हैं कि श्राद्ध पूरे विधि-विधान से करना चाहिए। मत्स्य पुराण के अनुसार, श्राद्ध की तिथि को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि कर सफेद वस्त्र धारण करें। दक्षिण दिशा में जल दें। पूरब की ओर मुख करके पितरों का मानसिक आह्वान करें। हाथ में तिल कुश लेकर बोलें कि आज मैं इस तिथि को अपने अमूक पितृ के निमित्त श्राद्ध कर रहा हूं। इसके बाद जल धरती पर छोड़ दें।

किसका श्राद्ध कब करें?
- जिन लोगों के सगे-संबंधियों और परिवार के सदस्यों की मृत्यु जिस तिथि पर हुई है, पितृपक्ष में पड़ने वाली उस तिथि में उनका श्राद्ध करना चाहिए।
- जिस महिला की मृत्यु पति के रहते हो गई हो उन नारियों का श्राद्ध नवमी तिथि में किया जाता है।
- ऐसी स्त्री जो मृत्यु को तो प्राप्त हो चुकी, किंतु उनकी तिथि नहीं पता हो तो उनका भी श्राद्ध मातृ नवमी को ही करने का विधान है।
- आत्महत्या, विष, दुर्घटना आदि से मृत्यु होने पर मृत पितरों का श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है।
- पिता के लिए अष्टमी तो माता के लिए नवमी की तिथि श्राद्ध करने के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
- अगर किसी कारणवश अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि याद न हो तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करना उचित है।

डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। 

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