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श्राद्धपक्ष : पितरों को अर्पित करने के लिए कुछ न हो पास तो अपनाएं ये उपाय

इन दिनों पितर पक्ष चल रहे हैं और ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध पक्ष में हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और श्राद्ध कर्म के माध्‍यम से भोग प्रसाद ग्रहण करके हमें आशीर्वाद देकर वापस अपने लोक चले जाते...

श्राद्धपक्ष : पितरों को अर्पित करने के लिए कुछ न हो पास तो अपनाएं ये उपाय
लाइव हिन्दुस्तान टीम,मेरठ Wed, 18 Sep 2019 02:23 PM
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इन दिनों पितर पक्ष चल रहे हैं और ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध पक्ष में हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और श्राद्ध कर्म के माध्‍यम से भोग प्रसाद ग्रहण करके हमें आशीर्वाद देकर वापस अपने लोक चले जाते हैं। 14 सितंबर को सूर्य अस्त होते सूर्य की रश्मियों (किरणों) पर बैठकर पितृगण धरती पर आ गए।

इसके चलते धराधामवासी 16 दिनों तक पुरखों की तिथियों के अनुसार पितरों को हव्य, कव्य और जल प्रदान किया जा रहा है। लेकिन, जिनके पास पितरों को अर्पित करने के लिए कुछ नहीं है, वह केवल मात्र दक्षिण दिशा में आंसू बहाकर पितरों को संतृप्त कर सकते हैं। क्योंकि गरुड़ पुराण और वास्तुशास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा पितरों को समर्पित मानी गई है।

16 दिन तक चलने वाले पितृपक्ष में मान्यता है कि तिथि के अनुसार अपने पितृ को मध्याह्न काल में यथा योग्य हव्य, कव्य दिया जाना चाहिए। मध्याह्न काल दोपहर 12 बजे से दो बजे तक माना जाता है। पितृपक्ष में यदि पास में धन है तो कई पंडितों को पितरों के निमित्त जिमाया जाता है। पंडितों के अलावा धेवते को भी पंडित की मान्यता शास्त्रों ने दी है। लेकिन, यदि पास में कुछ न हो तो दक्षिण दिशा की ओर मुख कर आंसू बहाने से भी पितृगण तृप्त हो जाते हैं। ऐसी गरुड़ पुराण में मान्यता है।

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यदि कोई बहुत ही गरीब हो तो वह केवल पितरों का स्वरूप स्मरण करने से उनको पुत्र और पौत्र का हव्य प्राप्त हो जाता है। पितृपक्ष में प्रतिदिन पितरों को तिथि के अनुसार दक्षिणा द्रव्य दिए जाने की मान्यता है। क्योंकि यह सब पितरों को प्राप्त होता है। जिन पितरों की तिथि याद न हो उनका श्राद्ध अमावस्या को किया जाएगा। वहीं पूर्णिमा के दिन मरने वाले पितरों का श्राद्ध भाद्रपद पूर्णिमा को होता है।

असली समस्या कि किसे जिमाएं
ज्योतिषाचार्य पंडित हृदय रंजन शर्मा के अनुसार समय ने बहुत कुछ बदल दिया है। अब पंडित भी जिमने को नहीं मिलते। अधिकतर पंडितों के पुत्र नौकरी पेशे वाले हैं और नगर से बाहर काम पर चले गए हैं। वहीं तमाम पंडितों को बीमारियों ने घेर लिया है। फलस्वरूप उन्हें पक्का भोजन रास नहीं आता। ऐसे में पंडित न मिले तो पंडितों के घर परोसा भेजने की परंपरा भी शास्त्रों में विद्यमान है।

प्रतिदिन करें श्राद्ध
ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद उपाध्याय ने बताया कि श्राद्ध केवल अमावस्या के दिन ही नहीं करने चाहिए। यूं तो तिथियां निर्धारित हैं जिन दिनों में पितरों के श्राद्ध किए जा सकते हैं। माता की तिथि याद न हो तो नवमी के दिन मातृ श्राद्ध होता है। संन्यासियों के भी श्राद्ध द्वादशी तिथि को किए जाते हैं। यदि तिथियां याद हों तो तिथियों के दिन सकल पितरों के श्राद्ध करने चाहिए। याद न हों तो अमावस्या के दिन पितरों का विसर्जन किया जा सकता है।

ये कहते हैं ज्योतिषाचार्य
ज्योतिषाचार्य आचार्य लवकुश शास्त्री की मानें तो पितृगण वर्षभर सूर्य की किरणों से धरती से संपर्क रखते हैं। उनकी तिथि और कनागत में जो भी दिया जाता है, वह सूर्य की किरणों के माध्यम से पितरों को प्राप्त होता है। यदि किसी के पास अर्पित करने के लिए कुछ न हो तो वह दक्षिण दिशा में पितरों के निमित्त केवल आंसू बहाकर उन्हें संतृप्त कर श्रद्धांजलि अर्पित कर सकते हैं। इसका उल्लेख गरुड़ पुराण और वास्तुशास्त्र में किया गया है।

ज्योतिषाचार्य पंडित हृदय रंजन शर्मा ने बताया कि दक्षिण दिशा पितरों को समर्पित है। पितर दक्षिण दिशा से ही श्राद्धपक्ष में धरती पर आते हैं। ऐसा शास्त्रों में उल्लेख किया गया है। मान्यता के अनुसार हम केवल दक्षिण दिशा में पितरों के निमित्त आंसू बहाकर उन्हें संतृप्त कर सकते हैं।

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