न में जहां भी सत्य है, वहीं शिव का वास है। शिव के साथ सारी विषमता है। वे औघड़ हैं, आशुतोष हैं, देवों में महादेव हैं, रुद्र हैं, गृहस्थ हैं, महायोगी हैं, त्यागी और तपस्वी हैं, पिता है, गुरु हैं, मृत्यु हैं, जीवन हैं। भारतीय होने का अर्थ है शिव को जानना। उनके जाने बिना इस लोक को जानना असंभव है। उनकी आराधना से मोक्ष मिलता है। वे ज्ञान का वेद हैं, वे रामायण के प्रणेता हैं, संगीत के स्वर हैं, ध्यान के उत्स हैं। उनमें नृत्य वास करता है, जीवन को गति मिलती है। वे प्रेमी हैं, ऋषियों के गुरु हैं, देवताओं के रक्षक हैं, असुरों के सहायक हैं और मानवों के आदर्श हैं।
सभ्यता के उषा काल में शिव और पार्वती विज्ञान के धरातल पर काल चिंतन करते है। ज्ञान के शिखर पर बैठकर संतुलन एवं सत्य के विविध रूपों को खोजना कोई महायोगी और योगिनी ही कर सकते हैं। शिव जो भी बोलते हैं, वह जीवन के सूत्र हैं। शिव के हृदय में संसार नहीं हैं, वासना नहीं है और अंधेरा भी नहीं है। उनका जीवन ही प्रकाश है। अब प्रकाश होगा, तो सदैव ही प्रेम, करुणा, साधना एवं भक्ति रहेगी। अंतस के जागरण के लिए शिवतत्त्व की जरूरत है। अंतस एक बार चैतन्य हो गया, तो सब कुछ बदल जाता है। आचरण ही साधना बन जाती है। हरेक शब्द प्र्रेमपूर्ण एवं कर्म के प्रत्येक चरण करुणापूर्ण हो जाते हैं। साधुता ही स्वभाव बन जाता है। भीतर जब आलोकित हो, तो बाहर सदैव ही प्रकाश रहेगा। शिव का आकार शून्य व ज्योति स्वरूप है।
हमारे अंदर शिव बैठे हैं। बस खुद को मोड़कर अंतर्यात्रा पर जाना होगा। शिव वर्तमान हैं, उनको पाने के लिए बस स्वयं को पलटना है। शरीर के बदले मन एवं बुद्धि को उघाड़ना है। जो शरीर पर सिमट कर रह गया, वह शिव को प्राप्त नहीं कर सकेगा। शिव साधना हैं, ध्यान हैं और योग भी हैं। साथ ही, इससे परे भी है। शिव को समझने का अर्थ है खुद का रूपांतरण। योगी शिव भौतिक से आत्मिक यात्रा का संदेश देते हैं। शरीर, मन और बुद्धि से आत्मा की यात्रा हैं शिव। खुद को धवल और शुद्ध करना ही शिवत्व है।
विज्ञान भैरव तंत्र में ऐसे ही 112 सवालों का विशद वर्णन है। इन सवालों के जवाब में योगी शिव ने माता पार्वती को विधियां बताईं, जिनसे व्यक्ति सत्य का साक्षात्कार करता है। शिव अनेक सूत्र, उपाय और विधि के माध्यम से इस अस्तित्व के समस्त अंतद्र्वंद्व, हरेक सवाल का जवाब देते हैं। इसके बाद भी माता को शांति नहीं मिलती है, तो फिर माता पार्वती पूछती हैं- हे प्रभु! कोई ऐसी कथा सुनाएं, जो हरेक प्रकार के कष्ट में सांत्वना दे सके।
शिव ने राम-सीता की कथा रामायण सुनाई। इस कथा को एक जिज्ञासु कौआ काकभुसुण्डी सुन लेते हैं और जगत में विचरण करने वाले नारद मुनि को वह कथा सुनाते हैं। नारद मुनि इसे वाल्मीकि को सुनाते हैं, जो खुद इसे लिपिबद्ध कर लव-कुश को कंठस्थ कराते हैं। फिर लव-कुश के माध्यम से यह कथा आमजन तक पहुंचती है। शिव वर्तमान हैं, उनको पाने के लिए बस स्वयं को पलटना है। शरीर के बदले मन एवं बुद्धि को उघाड़ना है।
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