इस रात आसमान से होती है अमृत की वर्षा
अश्विन मास में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा, शरद ऋतु के आरंभ का परिचायक है। इस दिन चंद्रमा, पृथ्वी के सबसे करीब होता है। इस दिन चंद्रमा, माता लक्ष्मी और...
अश्विन मास में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा, शरद ऋतु के आरंभ का परिचायक है। इस दिन चंद्रमा, पृथ्वी के सबसे करीब होता है। इस दिन चंद्रमा, माता लक्ष्मी और भगवान श्रीहरि की पूजा का विधान है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा के दिन ही मां लक्ष्मी का जन्म हुआ। जो लोग इस दिन व्रत रखते है उन्हें मां लक्ष्मी धन और सम्पति प्रदान करती हैं। शरद पूर्णिमा का चांद मानसून के पूरी तरह चले जाने का प्रतीक है। इस दिन चंद्रमा के प्रकाश में औषधीय गुण रहते हैं, जिनमें कई असाध्य रोगों को दूर करने की शक्ति होती है। शरद पूर्णिमा की रात खीर बनाकर उसे आकाश के नीचे रखा जाता है। मान्यता है कि रात के समय आसमान से अमृत की वर्षा होती है।
शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस रात हर गोपी के लिए एक कृष्ण बनाया। पूरी रात श्रीकृष्ण, गोपियों के साथ नृत्य करते रहे, जिसे महारास कहा जाता है। शरद पूर्णिमा का व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होकर धरती पर अमृत वर्षा करता है। इस दिन व्रत करने से विवाहित स्त्रियों को संतान की प्राप्ति होती है। बच्चे दीर्घायु होते हैं। इस दिन मां लक्ष्मी का पूजन करें। शाम के समय घर में दीपक जलाएं। जब रात्रि का एक पहर बीत जाए तो खीर का भोग मां लक्ष्मी को अर्पित करें। इस रात्रि में चंद्रकिरणों का शरीर पर पड़ना बहुत शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि इस रात मां लक्ष्मी आकाश में विचरण करती हैं और जो भी व्यक्ति जागृत अवस्था में मिलता है, मां लक्ष्मी उन्हें आशीर्वाद देती हैं।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।