ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News AstrologyShantla Mata Temple built in Dungari

डुंगरी में ऐसे बना शीतला माता का मंदिर

एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो देखूं कि पृथ्वी पर उनकी पूजा कौन करता है, कौन उन्हें मानता है। शीतला माता बूढ़ी का रूप धारण कर धरती पर राजस्थान के डुंगरी गांव पहुंची और देखा कि गांव में उनका मंदिर...

डुंगरी में ऐसे बना शीतला माता का मंदिर
लाइव हिन्दुस्तान टीम, मेरठ Fri, 20 Jul 2018 11:54 PM
ऐप पर पढ़ें

एक बार शीतला माता ने सोचा कि चलो देखूं कि पृथ्वी पर उनकी पूजा कौन करता है, कौन उन्हें मानता है। शीतला माता बूढ़ी का रूप धारण कर धरती पर राजस्थान के डुंगरी गांव पहुंची और देखा कि गांव में उनका मंदिर नहीं है और न ही कोई उनकी पूजा करता है।

माता शीतला गांव की गलियों में घूम रही थी कि तभी एक मकान के ऊपर से किसी ने चावल का उबला पानी (मांड) निचे फेंका। उबलता पानी शीतला माता के ऊपर गिरा जिससे शीतला माता के शरीर में (छाले) फफोले पड़ गये। शीतला माता के पुरे शरीर में जलन होने लगी। शीतला माता चिल्लाने लगी, अरे में जल गई, मेरा शरीर तप रहा है, जल रहा है, कोई मेरी मदद करो। लेकिन उस गांव में किसी ने शीतला माता की मदद नही की।

एक कुम्हारन (महिला) अपने घर के बाहर बैठी थी, उसने देखा कि बूढ़ी काफी जल गई है। महिला ने बूढ़ी माई पर खुब ठंडा पानी डाला और बोली, हे मां मेरे घर में रात कि बनी हुई राबड़ी रखी है थोड़ा दही भी है। तू दही-राबड़ी खा लें। बूढ़ी माई ने ठंडी (ज्वार) के आटे कि राबड़ी और दही खाया तो शरीर को ठंडक मिली।

महिला की नजर उस बूढ़ी माई के सिर के पिछे पड़ी तो कुम्हारन ने देखा कि एक आंख बालों के अंदर छुपी है। यह देखकर वह कुम्हारन डर के मारे घबराकर भागने लगी। इसी दौरान उस बूढ़ी माई ने कहा रुक जा बेटी तु डर मत। मैं कोई भुत प्रेत नही हूँ। मैं शीतला देवी हूं, मैं तो इस घरती पर देखने आई थी कि मुझे कौन मानता है। कौन मेरी पुजा करता है।

इतना कह माता चार भुजा वाली हीरे जवाहरात के आभूषण पहने सिर पर स्वर्ण मुकुट धारण किये अपने असली रूप में प्रकट हो गईं। माता के दर्शन कर महिला सोचने लगी कि अब मैं गरीब इस माता को कहां पर बैठाऊँ। उसने देवी से कहा कि मेरे घर में तो आपको बैठाने तक का स्थान नहीं है, आपकी सेवा कैसे करूं।

शीतला माता प्रसन्न होकर उस महिला के घर में खड़े गधे पर बैठ गईं। उन्होंने एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में डलिया लेकर महिला के घर की दरिद्रता को झाड़कर डलिया में भरकर फेंक दिया। साथ ही महिला से वरदान मांगने को कहा। महिला ने हाथ जोड़कर कहा, माता मेरी इच्छा है कि अब आप इसी (डुंगरी) गांव मे स्थापित होकर रहो। होली के बाद की सप्तमी को भक्ति भाव से पुजा कर जो भी आपको ठंडा जल, दही व बासी ठंडा भोजन चढ़ाए उसके घर की दरिद्रता को दूर करो।
 शीतला माता ने महिला को सभी वरदान दे दिए और आशीर्वाद दिया कि इस धरती पर उनकी पूजा का अधिकार सिर्फ कुम्हार जाति का ही होगा। उसी दिन से डुंगरी गाँव में शीतला माता स्थापित हो गईं और उस गांव का नाम हो गया शील की डुंगरी।

बड़ा मंदिर
शील की डुंगरी भारत का एक मात्र मुख्य मंदिर है। शीतला सप्तमी के दिन वहाँ बहुत विशाल मेला भरता है। इस कथा को पढ़ने तथा सुनने से घर की दरिद्रता का नाश होने के साथ सभी मनोकामना पुरी होती हैं।

मान्यता
मान्यता है कि शीतला माता को जो भी नारी होली के बाद सप्तमी को भक्तिभाव से ठंडा जल, दही आदि चढ़ाती है, माता उसे सदा सुहागन रखती हैं। जो पुरुष शीतला सप्तमी को नाई के यहां बाल नहीं कटवाते। साथ ही पुरुष भी ठंडा जल, नरियल फूल चढ़ाकर परिवार सहित ठंडा बासी भोजन करे उसके काम धंधे व्यापार में कभी दरिद्रता नहीं आती।

इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें