मकर, कुंभ, धनु, मिथुन और तुला राशि वाले शनि दोषों से मुक्ति के लिए सावन के आखिरी सोमवार पर कर लें ये उपाय
16 अगस्त को सावन का आखिरी सोमवार है। सावन का महीना 22 अगस्त को समाप्त हो जाएगा। हिंदू धर्म में सावन के सोमवार का बहुत अधिक महत्व होता है। सावन के सोमवार पर विधि- विधान से भगवान शंकर की पूजा- अर्चना...

16 अगस्त को सावन का आखिरी सोमवार है। सावन का महीना 22 अगस्त को समाप्त हो जाएगा। हिंदू धर्म में सावन के सोमवार का बहुत अधिक महत्व होता है। सावन के सोमवार पर विधि- विधान से भगवान शंकर की पूजा- अर्चना करने से सभी तरह के दोषों से मुक्ति हो जाती है। हर कोई शनि के अशुभ प्रभावों से भयभीत रहता है। शनि के अशुभ प्रभावों से बचने के लिए भगवान शंकर की अराधना करनी चाहिए। भगवान शंकर की कृपा से शनि दोषों से मुक्ति मिल जाती है और जीवन आनंद से भर जाता है। इस समय मकर, कुंभ और धनु राशि पर शनि की साढ़ेसाती और मिथुन, तुला राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या लगने पर व्यक्ति का जीवन बुरी तरह प्रभावित हो जाता है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से पीड़ित लोग सावन के आखिरी सोमवार पर जरूर करें ये उपाय....
शिवलिंग पर जल अर्पित करें
- शिवलिंग पर जल अर्पित करें। शिवलिंग पर जल अर्पित करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं। सोमवार का दिन भगवान शंकर को समर्पित होता है। इस दिन शिवलिंग पर जल अर्पित करने से शिवजी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
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शिवलिंग पर गंगा जल अर्पित करें
- शिवलिंग पर गंगा जल अर्पित करने से भी भोले शंकर प्रसन्न होते हैं। हिंदू धर्म में गंगा जल को पवित्र माना जाता है। भगवान शंकर का गंगा जल से जरूर अभिषेक करें।
शिवलिंग पर दूध अर्पित करें
- शिवलिंग पर दूध अर्पित करना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं। शिवलिंग पर दूध अर्पित करने के बाद शिवलिंग का जल या गंगा जल से अभिषेक जरूर करें।
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लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ करें
- लिंगाष्टकम स्तोत्र
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् ।
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥1॥
देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् ।
रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥2॥
सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् ।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥3॥
कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् ।
दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥4॥
कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् ।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥5॥
देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥6॥
अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् ।
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥7॥
सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम् ।
परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥8॥
लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥