Sawan 2019: बिल्वेश्वर मंदिर में मंदोदरी को दिए थे भगवान शिव ने दर्शन
मेरठ का श्री बिल्वेश्वर नाथ महादेव मंदिर रामायण कालीन है। बताया जाता है कि इसी मंदिर में रावण की पत्नी मंदोद6री पूजा करती थीं। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर शिवजी ने उसे वर दिया था। सावन में यहां...
मेरठ का श्री बिल्वेश्वर नाथ महादेव मंदिर रामायण कालीन है। बताया जाता है कि इसी मंदिर में रावण की पत्नी मंदोद6री पूजा करती थीं। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर शिवजी ने उसे वर दिया था। सावन में यहां भक्तों की भारी भीड़ जुटती है। इनमें कुंवारी लड़कियों की संख्या ज्यादा होती है। मान्यता है कि महादेव प्रसन्न होकर सुयोग्य वर की कामना पूरी करते हैं।
मेरठ में सदर थाने के पीछे स्थित श्री बिल्वेश्वर महादेव मंदिर पौराणिकता को समेटे हुए है। कहते हैं यहां बिल्वपतरों बेलपत्थर के अनेक पेड़ थे जो महादेव को बहुत पसंद हैं। इसलिए मंदिर को बिल्वेश्वरनाथ महादेव मंदिर कहा जाता था। बताते हैं कि लंकापति रावण की पत्नी मंदोदरी पूजा के लिए आती थीं। कहा जाता है कि मेरठ में मंदोदरी का मायका था। भगवान शिव ने मय दानव की पुत्री मंदोदरी की तपस्या से खुश होकर उन्हें इसी मंदिर में दर्शन दिए थे। मंदोदरी ने लगातार 40 दिन तक यहां दीपक जलाया था। आज भी माना जाता है कि इस मंदिर में श्रद्धाभाव से भगवान शिव की आराधना करने और 40 दिनों तक दीपक जलाने से मनोकामना पूरी होती है। इसी मंदिर में रावण की पहली बार मंदोदरी से मुलाकात हुई थी।
बद्रीनाथ जैसा है मंदिर का मुख्य द्वार: श्री बिल्वेश्वर नाथ महादेव मंदिर की एक खासियत ये भी है कि इसका मुख्य द्वार उत्तराखंड के बद्रीनाथ धाम के जैसा है। मंदिर के अंदर द्वार छोटे हैं, जिनमें झुककर ही प्रवेश किया जा सकता है। अंदर लगे पीतल के घंटे भी खास तरह की ध्वनि निकालते हैं। परिसर में ही एक कुआं है, जिसके बारे में मान्यता है कि यहीं से जल निकालकर मंदोदरी शिवलिंग पर चढ़ाती थी। यहां स्थापित शिवलिंग धातु का बना है, जबकि आमतौर पर मंदिरों में स्थापित शिवलिंग पत्थर का होता है।
कांवड़िए करते हैं आराध्य का अभिषेक: सावन में मंदिर में पूजा करने से महादेव प्रसन्न होकर अपने भक्तों की इच्छा पूरी करते हैं। महिलाएं सोमवार का व्रत रखकर भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करती हैं।
जबकि कुंवारी लड़कियां मनवांछित वर पाने के लिए व्रत रख यहां मनोकामना मांगने आती हैं। हरिद्वार से गंगाजल लेकर आने वाले कांवड़ियों की भी भारी भीड़ यहां आती है। मय के नाम पर ही मयराष्ट्र से होते हुए शहर का नाम मेरठ पड़ा। मय की पुत्री मंदोदरी ने भगवान शिव से इच्छा जताई कि उनका पति धरती पर सबसे बड़ा विद्वान और शक्तिशाली हो। भोलेनाथ की कृपा से मंदोदरी को पति के रूप में रावण की प्राप्ति हुई, तभी से इस मंदिर को भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त है। मंदिर के पुजारी पंडित हरीशचंद्र जोशी बताते हैं कि यहां सच्चे मन से भोलेनाथ की पूजा करने वालों की हर मनोकामना पूरी होती है।