सावन कथा 17: शंकरजी ने की देवी पीठों की स्थापना, जानिए कैसे
सती ने भगवान राम की परीक्षा ले ली। राम ने पहचान लिया कि आप तो सती हैं। भगवती हैं। सती अपने किए पर बहुत पछतायीं। तब उनको लगा कि शंकर जी ने उनको क्यों मना किया था कि राम की परीक्षा मत लो। कई बार...
सती ने भगवान राम की परीक्षा ले ली। राम ने पहचान लिया कि आप तो सती हैं। भगवती हैं। सती अपने किए पर बहुत पछतायीं। तब उनको लगा कि शंकर जी ने उनको क्यों मना किया था कि राम की परीक्षा मत लो। कई बार जाने-अनजाने हम इस प्रकार की गल्तियां करते ही रहते हैं। हमको भान नहीं होता कि हम क्या कर रहे हैं।
भगवान राम की परीक्षा लेकर सती जब शंकर जी के पास पहुंची तो और भी आश्चर्य हुआ। शंकरजी ने सवाल दागा- ले ली राम की परीक्षा। क्या रहा। सती से तो कुछ जवाब देते नहीं बना। इधर शंकर जी ने मन ही मन विचार किया कि सती ने उनके इष्ट राम की परीक्षा लेकर अच्छा कार्य नहीं किया। मन में विचार आते ही देवतागण जयजयकार करने लगे। भोले, बाबा , यह प्रण तो आप ही ले सकते हो। कालांतर में सती प्रसंग होता है, जिसमें सती शंकर जी के लाख मना करने पर भी अपने पिता राजा दक्ष प्रजापति के यहां जाती हैं। वहां शंकर जी का तिरस्कार होने पर भस्म हो जाती हैं।
सती का भस्म होना और देवी पीठों की स्थापना
सती राजा दक्ष के यहां यज्ञकुंड में भस्म हो गईं। शंकर जी को जब इसका पता लगा तो वह बहुत कुपित हुए। शंकर जी और शिव गण वहां पहुंचे। शंकर जी ने अपनी शक्ति से देवी के शरीर को लिया और जहां जहां देवी के अंग गिरे, वहां अलौकिक देवी पीठ की स्थापना हो गई। जहां-जहां सती का कोई अंग गिरा, वहां एक पवित्र तीर्थ स्थल का निर्माण हो गया। देवपुर नामक स्थान पर देवी का चरण गिरे। वहां पर महाभाग देवी उत्पन्न हुई। इसके साथ ही कामाख्या, उटयानी,जालंधर, चण्डी, वागेश्वरी आदि सिद्ध पीठ हुए। अगले जन्म में भी सती ने शंकरजी को प्राप्त करने के लिए कठोर तप किया।
हे महेश्वर, यद्यपि मैं अपना शरीर ( सती जन्म) त्याग कर रही हूं, किंतु आप सदा ही मुझ पर कृपा दृष्टि बनाए रखना। देवी भगवती को प्राप्त करने के लिए हिमाचल और मेनका ने भी देवी की स्तुति की। हे देवी, जगत माता, आप सर्वश्रेष्ठ हैं। आपकी महिमा अपार है। हम सब लोग आपकी शरण में आए हैं। अब आप दोबारा अवतार लेकर हम सबके मनोरथ पूर्ण करिए। देवी बोली, तुम सभी की इच्छा पूरी होगी। इतना कहकर देवी अंतर्ध्यान हो गईं। देवी ने फिर पार्वती बनकर जन्म लिया। अगले जन्म में सती ने पार्वती के रूप में हिमाचल-मेनका के यहां जन्म लिया और कठोर तप करके भगवान शंकर का वरण किया।