ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News Astrologysavan katha 14 when brahma told devi to marry lord shiva

सावन कथा 14: देवी से बोले ब्रह्मा जी, शिव जी से कर लो विवाह

किसी को समझाना भी आसान काम नहीं है। किसी को सद् मार्ग पर ले जाने की बात कहो तो वह उल्टा ही लेता है। यह सामान्य जन के लिए ही नहीं बल्कि ब्रह्मा जी पर भी लागू होती है। ब्रह्मा जी को शंकर जी ने समझाया...

सावन कथा 14: देवी से बोले ब्रह्मा जी, शिव जी से कर लो विवाह
सूर्यकांत द्विवेदी,मुरादाबादMon, 13 Aug 2018 11:08 PM
ऐप पर पढ़ें

किसी को समझाना भी आसान काम नहीं है। किसी को सद् मार्ग पर ले जाने की बात कहो तो वह उल्टा ही लेता है। यह सामान्य जन के लिए ही नहीं बल्कि ब्रह्मा जी पर भी लागू होती है। ब्रह्मा जी को शंकर जी ने समझाया तो वह उनसे ही ईर्ष्या रखने लगे। यह जतन करने लगे कि किसी भी तरह शिव जी की तपस्या भंग हो और वह विवाह कर लें। तभी उनको पता चलेगा कि स्त्री की मोहमाया क्या होती है। ब्रह्मा जी कामदेव को बसंत के साथ शंकर जी की तपस्या भंग करने के लिए भेजा। लेकिन वह असफल होकर लौट आया। कामदेव दो बार गया, लेकिन हर बार उनको खाली हाथ लौटना पड़ा। अब कामदेव क्या करें। ब्रह्मा जी ने रति से उनका विवाह भी करा दिया। हर तरफ से हारकर ब्रह्मा जी विष्णु जी के पास पहुंचे। विष्णु जी से कहा कि आप इस कार्य में उनकी मदद करें। मैं जानता हूं कि भोले भंडारी महान तपस्वी हैं। कामदेव के हर उपक्रम का उन पर लेश मात्र भी असर नहीं हुआ। अब आप ऐसा कुछ कीजिए कि वह विवाह कर लें।

सावन कथा-13 शंकर जी बोले-धर्माचार्य भ्रष्ट हो जाए तो पाप से मुक्ति नहीं

ब्रह्मा को विष्णु ने समझाया
विष्णु जी ने ब्रह्मा जी को समझाया, तुम इस बात पर ही ईर्ष्या करने लगे कि शंकर जी ने तुमको सदकामी होने का संदेश दिया। तुमको समझाया कि धर्माचार्यों की दृष्टि सही होनी चाहिए। इसी बात पर तुम नाराज हो गए। मेरी बात मानो तो शंकर जी से ईर्ष्या त्याग दो। उनकी कही बातों को मानो। हां, यदि तुम चाहते हो कि शंकर जी विवाह करें तो तुम देवी की आराधना करो। तप करो। ब्रह्मा जी को फिर निज ज्ञान हुआ। वह समझ गए कि उन्होंने जाने-अनजाने गलत कार्य किया है।

देवी की आराधना
कालांतर में ब्रह्मा जी के निर्देश पर राजा दक्ष ने तप किया। देवी अम्बा से प्रार्थना की कि आप उमा बनकर  मेरे यहां यहां जन्म लें। उधर, ब्रह्मा जी ने भी तप किया। दोनों का मकसद तो एक ही था। देवी भगवती प्रगट हुईं तो दोनों ने अपनी इच्छा भी व्यक्त कर दी। देवी बोलीं, यह तुमने कैसे सोच लिया कि मैं भगवान शंकर जी के विरुद्ध जा सकती हूं। तुम्हारा उद्देश्य पूरा करने के लिए मैं कैसे यह कार्य कर सकती हूं। देवी ध्यानावस्था में चली गईं। तभी शंकर जी ने कहा कि आप इनकी बात मान लो। ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं। लेकिन सदमार्ग की राह पर लाने के लिए यह कदम उठाना आवश्यक है। देवी ने कहा, ठीक है। इस तरह देवी अवतार धारण करने को राजी हो गईं।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें