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सावन 2018: इस महीने करें भगवान शिव का जल से अभिषेक

शिव और सावन का बहुत गहरा संबंध है। ये रिश्ता आध्यात्मिक भी है, वैज्ञानिक भी और पौराणिक भी। सावन को स्वास्थ्य से भी जोड़ कर देखा जाता है। जब सावन में मेघ बरस रहा होता है, तो शिवपुराण में महादेव को जल...

सावन 2018: इस महीने करें भगवान शिव का जल से अभिषेक
ऋषभ सक्सेना, लखनऊ, उत्तर प्रदेशTue, 31 Jul 2018 06:22 PM
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शिव और सावन का बहुत गहरा संबंध है। ये रिश्ता आध्यात्मिक भी है, वैज्ञानिक भी और पौराणिक भी। सावन को स्वास्थ्य से भी जोड़ कर देखा जाता है। जब सावन में मेघ बरस रहा होता है, तो शिवपुराण में महादेव को जल अर्पित करने का बड़ा महत्व बताया गया है। सावन में शिव को बेलपत्र अर्पित करना भी विशेष माना जाता है। 

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन से विष निकला था। इस विष को पीने के लिए शिव भगवान आगे आए और उन्होंने विषपान कर लिया। जिस माह में शिव ने विष पिया था, वह सावन का माह था। विष पीने के बाद शिव के तन में ताप बढ़ गया और उनके स्वास्थ्य*की चिंता करते सभी देवताओं ने प्रार्थना की थी और उनका उपचार भी तलाशा था। 

अत: यह माह पूजा-पाठ के लिए विशेष है। ऐसी मान्यता भी है कि शिव के विषपान से उत्पन्न ताप को शीतलता प्रदान करने के लिए मेघराज इंद्र ने भी बहुत वर्षा की थी। इससे भगवान शिव को बहुत शांति मिली। तभी से शिव जी का अभिषेक करने की परंपरा प्रारंभ *हो गई।

श्रावण या सावन का महीना ज्ञानयोग का महीना होता है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की सेवा करके उनसे ज्ञान प्राप्ति की आज्ञा ली जाती है। इसके बाद अगले दिन से गुरु से शास्त्रों के श्रवण की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। सावन के महीने में बारिश होती है और जीव-जंतु बाहर निकल आते हैं, अत: इस माह में कोई मंगल कार्य नहीं करते, क्योंकि उसमें बाधाएं बहुत आती हैं। सावन में शिव को बेलपत्र चढ़ाने का विशेष कारण है। बेल का आयुर्वेद में काफी महत्व है। ये चिकित्सा में प्रामाणिक सच है कि बेल वात, पित्त और कफ को नियंत्रित करता है और पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है। इस प्रकार बेल का पेड़ श्रद्धा के दरवाजे से समाज में प्रवेश कर गया।

सावन को भगवान शिव का माह मानने के पीछे एक पौराणिक कथा है। देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से अपने शरीर का त्याग कर दिया था। अपने शरीर का त्याग करने से पूर्व देवी ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था। अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमालय के घर में जन्म लिया और उन्होंने युवावस्था में सावन माह में निराहार रह कर कठोर व्रत किया। परिणामस्वरूप इसी सावन माह में उन्हें शिव प्राप्त हुए। अत: सावन में शिव की पूजा से उत्तम जीवनसाथी पाने की प्रथा भी प्राचीन समय से चली आ रही है। 

आयुर्वेद के अनुसार सावन में दही, छाछ, दूध, हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन वर्जित बताया गया है, क्योंकि ये शरीर में वात की समस्या को बढ़ाते हैं। इसलिए इन वस्तुओं को महादेव पर अर्पित किया जाता है, क्योंकि शिव तत्व हर प्रकार के विष को ग्रहण करने वाले तत्व का प्रतीक है।

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