Sankashti Chaturthi Vrat 2021: विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन बन रहा ग्रह-नक्षत्रों का विशेष शुभ संयोग, जानिए महत्व व पूजा विधि
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी मनाते हैं। इस साल यह तिथि 30 अप्रैल 2021, दिन शुक्रवार को पड़ रही है। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी को विकट संकष्टी चतुर्थी के...
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी मनाते हैं। इस साल यह तिथि 30 अप्रैल 2021, दिन शुक्रवार को पड़ रही है। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी को विकट संकष्टी चतुर्थी के नाम से जानते हैं। संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान श्रीगणेश की पूजा का विधान है। कहा जाता है कि श्रीगणेश की इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इस साल संकष्टी चतुर्थी कई शुभ संयोग में मनाई जाएगी। इस दिन शिव योग के साथ सिद्धि योग भी बन रहा है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शिव व सिद्धि योग को शुभ योगों में गिना जाता है। इस दौरान किए गए कार्यों में सफलता हासिल होती है। हिंदू पंचाग के अनुसार, शिव योग 01 मई की सुबह 04 बजकर 42 मिनट तक रहेगा। इसके बाद सिद्धि योग लग जाएगा। विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन ज्येष्ठा नक्षत्र रहेगा। जो कि दोपहर 12 बजकर 08 मिनट तक रहेगा। इसके बाद मूल नक्षत्र लग जाएगा। इन दोनों नक्षत्रों का शुभ कार्यों के लिए उत्तम माना जाता है।
संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि-
1. सबसे पहले स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. इस दिन लाल वस्त्र पहनकर पूजा करना शुभ माना जाता है।
3. पूजा करते समय मुख उत्तर या पूर्व दिशा में रखना चाहिए।
4. साफ आसन या चौकी पर भगवान श्रीगणेश को विराजित करें।
5. अब भगवान श्रीगणेश की धूप-दीप से पूजा-अर्चना करें।
6. पूजा के दौरान ॐ गणेशाय नमः या ॐ गं गणपते नमः मंत्रों का जाप करना चाहिए।
7. पूजा के बाद श्रीगणेश को लड्डू या तिल से बने मिष्ठान का भोग लगाएं।
8. शाम को व्रत कथा पढ़कर और चांद को अर्घ्य देकर व्रत खोलें।
9. व्रत पूरा करने के बाद दान करें।
संकष्टी चतुर्थी का महत्व-
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान श्रीगणेश की पूजा-अर्चना करने से भक्तों की सभी बाधाएं दूर होती हैं। शास्त्रों में भगवान श्रीगणेश को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। कहा जाता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन करना शुभ होता है। चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही यह व्रत पूर्ण माना जाता है।