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Sakat Chauth Vrat 2021: चंद्रमा को अर्घ्‍य देने के लिए ऐसे करें तैयारी, पौराणिक कथा से जानें कैसे इस दिन संकट से उबरे थे श्रीगणेश

माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का विशेष महत्व है इसे संकष्टी चतुर्थी या सकट चौथ के नाम से जाना जाता है। इस साल 31 जनवरी 2021 को रखा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, सकट का व्रत रखने से बच्चे...

Sakat Chauth Vrat 2021: चंद्रमा को अर्घ्‍य देने के लिए ऐसे करें तैयारी, पौराणिक कथा से जानें कैसे इस दिन संकट से उबरे थे श्रीगणेश
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीTue, 05 Jan 2021 11:14 AM
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माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी का विशेष महत्व है इसे संकष्टी चतुर्थी या सकट चौथ के नाम से जाना जाता है। इस साल 31 जनवरी 2021 को रखा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, सकट का व्रत रखने से बच्चे दीर्घायु होते हैं। साल की इस चतुर्थी को संतान की लंबी आयु के लिए रखा जाता है। इस व्रत को 'वक्रतुण्डी चतुर्थी’, ‘माही चौथ’ और ‘तिलकुटा चौथ’ के नाम से भी जानते हैं। 

सकट चौथ के दिन चंद्रोदय का समय रात 9 बजे है। चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 13 तारीख को शाम 5.32 बजे से शुरू होकर 14 जनवरी 2020 को दोपहर 2.49 बजे तक रहेगा।

सकट चौथ व्रत पूजा विधि-

1. सुबह स्नान ध्यान करके भगवान गणेश की पूजा करें।
2. इसके बाद सूर्यास्त के बाद स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
3. गणेश जी की मूर्ति के पास एक कलश में जल भर कर रखें।
4. धूप-दीप, नैवेद्य, तिल, लड्डू, शकरकंद, अमरूद, गुड़ और घी अर्पित करें।
5. तिलकूट का बकरा भी कहीं-कहीं बनाया जाता है।
6. पूजन के बाद तिल से बने बकरे की गर्दन घर का कोई सदस्य काटता है।

सकट व्रत के दिन चंद्रमा को ऐसे दें अर्घ्य-

मान्यता है कि सकट पूजा के बाद शाम को चंद्रमा को अर्घ्‍य देने के बाद ही व्रत तोड़ा जाता है। अर्घ्य में शहद, रोली, चंदन और रोली मिश्रित दूध से देना चाहिए। कुछ जगहों पर महिलाएं व्रत तोड़ने के बाद सबसे पहले शकरकंद खाती हैं।

व्रत कथा- संकट से उबरे थे भगवान गणेश

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सकट चौथ के दिन गणेश भगवान के जीवन पर आया सबसे बड़ा संकट टल गया था। इसीलिए इसका नाम सकट चौथ पड़ा। इसे पीछे ये कहानी है कि मां पार्वती एकबार स्नान करने गईं। स्नानघर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को खड़ा कर दिया और उन्हें रखवाली का आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर न आऊं किसी को भीतर आने की इजाजत मत देना।

गणेश जी अपनी मां की बात मानते हुए बाहर पहरा देने लगे। उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने के लिए कहा। भगवान शिव ने इस बात से बेहद आहत और अपमानित महसूस किया। गुस्से में उन्होंने गणेश भगवान पर त्रिशूल का वार किया। जिससे उनकी गर्दन दूर जा गिरी।

स्नानघर के बाहर शोरगुल सुनकर जब माता पार्वती बाहर आईं तो देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई है। ये देखकर वो रोने लगीं और उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दें ।

इसपर शिवजी ने एक हाथी का सिर लेकर गणेश जी को लगा दिया । इस तरह से गणेश भगवान को दूसरा जीवन मिला । तभी से गणेश की हाथी की तरह सूंड होने लगी। तभी से महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगीं।

व्रत कथा-

किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवां नहीं पका। परेशान होकर वह राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आंवा पक ही नहीं रहा है। राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा। राजपंडित ने कहा, ''हर बार आंवा लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवा पक जाएगा।'' राजा का आदेश हो गया। बलि आरम्भ हुई। जिस परिवार की बारी होती, वह अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता। इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुढि़या के लड़के की बारी आई।

बुढि़या के एक ही बेटा था तथा उसके जीवन का सहारा था, पर राजाज्ञा कुछ नहीं देखती। दुखी बुढ़िया सोचने लगी, ''मेरा एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझ से जुदा हो जाएगा।'' तभी उसको एक उपाय सूझा। उसने लड़के को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा, ''भगवान का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता तेरी रक्षा करेंगी।''

सकट के दिन बालक आंवां में बिठा दिया गया और बुढि़या सकट माता के सामने बैठकर पूजा प्रार्थना करने लगी। पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवा पक गया। सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया। आंवां पक गया था और बुढ़िया का बेटा जीवित व सुरक्षित था। सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे। यह देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली। तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है।

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