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Sakat Chauth Vrat 2021: सकट चौथ व्रत की ये है सही तारीख, भगवान गणेश और कुम्हार से जुड़ी हैं व्रत की ये पौराणिक कथाएं

सकट चौथ का व्रत हर महीने रखा जाता है। माघ महीने में पड़ने वाले सकट चौथ का विशेष महत्व होता है। इस दिन को सकट चौथ, संकष्टी चतुर्थी, माघ चतुर्थी व्रत या तिलकुट चौथ के नाम से भी जानते हैं। इस दिन माताएं...

Sakat Chauth Vrat 2021: सकट चौथ व्रत की ये है सही तारीख, भगवान गणेश और कुम्हार से जुड़ी हैं व्रत की ये पौराणिक कथाएं
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीSun, 17 Jan 2021 09:08 AM
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सकट चौथ का व्रत हर महीने रखा जाता है। माघ महीने में पड़ने वाले सकट चौथ का विशेष महत्व होता है। इस दिन को सकट चौथ, संकष्टी चतुर्थी, माघ चतुर्थी व्रत या तिलकुट चौथ के नाम से भी जानते हैं। इस दिन माताएं अपनी संतान की लंबी आयु की कामना के लिए उपवास करती हैं। कहते हैं कि भगवान गणेश की कृपा से व्रती के सभी दुख दूर हो जाते हैं। इस साल सकट चौथ 31 जनवरी 2021 को है।

सकट चौथ व्रत शुभ मुहूर्त-

सकट चौथ व्रत तिथि- जनवरी 31, 2021 (रविवार)
सकट चौथ के दिन चन्द्रोदय समय – 20:40
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ – जनवरी 31, 2021 को 20:24 बजे
चतुर्थी तिथि समाप्त – फरवरी 01, 2021 को 18:24 बजे।

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सकट चौथ व्रत कथा-

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सकट चौथ के दिन गणेश भगवान के जीवन पर आया सबसे बड़ा संकट टल गया था। इसीलिए इसका नाम सकट चौथ पड़ा। इसे पीछे ये कहानी है कि मां पार्वती एकबार स्नान करने गईं। स्नानघर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को खड़ा कर दिया और उन्हें रखवाली का आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर न आऊं किसी को भीतर आने की इजाजत मत देना।

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गणेश जी अपनी मां की बात मानते हुए बाहर पहरा देने लगे। उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने के लिए कहा। भगवान शिव ने इस बात से बेहद आहत और अपमानित महसूस किया। गुस्से में उन्होंने गणेश भगवान पर त्रिशूल का वार किया। जिससे उनकी गर्दन दूर जा गिरी।

स्नानघर के बाहर शोरगुल सुनकर जब माता पार्वती बाहर आईं तो देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई है। ये देखकर वो रोने लगीं और उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दें ।

इसपर शिवजी ने एक हाथी का सिर लेकर गणेश जी को लगा दिया । इस तरह से गणेश भगवान को दूसरा जीवन मिला । तभी से गणेश की हाथी की तरह सूंड होने लगी। तभी से महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगीं।

एक अन्य कथा भी है प्रचलित-

व्रत कथा

किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवां नहीं पका। परेशान होकर वह राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आंवा पक ही नहीं रहा है। राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा। राजपंडित ने कहा, ''हर बार आंवा लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवा पक जाएगा।'' राजा का आदेश हो गया। बलि आरम्भ हुई। जिस परिवार की बारी होती, वह अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता। इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुढि़या के लड़के की बारी आई। बुढि़या के एक ही बेटा था तथा उसके जीवन का सहारा था, पर राजाज्ञा कुछ नहीं देखती। दुखी बुढ़िया सोचने लगी, ''मेरा एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझ से जुदा हो जाएगा।'' तभी उसको एक उपाय सूझा। उसने लड़के को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा, ''भगवान का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता तेरी रक्षा करेंगी।''

सकट के दिन बालक आंवां में बिठा दिया गया और बुढि़या सकट माता के सामने बैठकर पूजा प्रार्थना करने लगी। पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवा पक गया। सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया। आंवां पक गया था और बुढ़िया का बेटा जीवित व सुरक्षित था। सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे। यह देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली। तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है।

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