आज, 24 जनवरी 2021 को पौष पुत्रदा एकादशी है। पौष मास में शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है। पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान की लंबी आयु, सुख-समृद्धि के साथ संतान प्राप्ति की कामना करने वाली महिलाएं रखती हैं। मान्यता है कि एकादशी व्रत नियम का पालन करने वालों के श्रीहरि सभी कष्ट दूर कर देते हैं।
पुत्रदा एकादशी व्रत शुभ मुहूर्त-
व्रत प्रारंभ: 23 जनवरी, शनिवार, रात 8:56 बजे।
व्रत समाप्ति: 24 जनवरी, रविवार, रात 10: 57 बजे।
पारण का समय: 25 जनवरी, सोमवार, सुबह 7:13 से 9:21 बजे तक।
पौष पुत्रदा एकादशी पूजा विधि-
1. सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए।
2. इसके बाद विष्णु सहस्रनाम स्तोत्रम का पाठ करना चाहिए।
3. व्रत के दिन अनाज या चावल के सेवन से बचना चाहिए।
4. पूरे दिन भगवान विष्णु का ध्यान लगाना चाहिए।
5. शाम को विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा और आरती के बाद गरीबों या जरूरतमंद को दान देना चाहिए।
संतान की कामना के लिए करें भगवान कृष्ण की पूजा-
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, संतान कामना के लिए इस दिन भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन सुबह पति-पत्नी को साथ में भगवान कृष्ण की पूजा करनी चाहिए। उन्हें पीले फल, तुलसी, पीले पुष्प और पंचामृत आदि अर्पित करना चाहिए। इसके बाद संतान गोपाल मंत्र का जाप करना चाहिए। मंत्र जाप के बाद पति-पत्नी को साथ में प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण को पंचामृत का भोग लगाना शुभ माना जाता है।
पुत्रदा एकादशी की कथा
धार्मिक कथाओं के अनुसार, भद्रावती राज्य में सुकेतुमान नाम का राजा राज्य करता था। उसकी पत्नी शैव्या थी। राजा के पास सबकुछ था, सिर्फ संतान नहीं थी। ऐसे में राजा और रानी उदास और चिंतित रहा करते थे। राजा के मन में पिंडदान की चिंता सताने लगी। ऐसे में एक दिन राजा ने दुखी होकर अपने प्राण लेने का मन बना लिया, हालांकि पाप के डर से उसने यह विचार त्याग दिया। राजा का एक दिन मन राजपाठ में नहीं लग रहा था, जिसके कारण वह जंगल की ओर चला गया।
राजा को जंगल में पक्षी और जानवर दिखाई दिए। राजा के मन में बुरे विचार आने लगे। इसके बाद राजा दुखी होकर एक तालाब किनारे बैठ गए। तालाब के किनारे ऋषि मुनियों के आश्रम बने हुए थे। राजा आश्रम में गए और ऋषि मुनि राजा को देखकर प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि राजन आप अपनी इच्छा बताए। राजा ने अपने मन की चिंता मुनियों को बताई। राजा की चिंता सुनकर मुनि ने कहा कि एक पुत्रदा एकादशी है। मुनियों ने राजा को पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने को कहा। राजा वे उसी दिन से इस व्रत को रखा और द्वादशी को इसका विधि-विधान से पारण किया। इसके फल स्वरूप रानी ने कुछ दिनों बाद गर्भ धारण किया और नौ माह बाद राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई।