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Dattatreya jayanti 2019: पूर्णिमा को प्रदोष काल में हुआ था भगवान दत्तात्रेय का जन्म, भगवान विष्णु के 24 अवतारों में छठे स्थान हैं भगवान दत्तात्रेय

भारत में दत्तात्रेय एक ऐसे अवतार हैं, जिन्होंने 24 गुरुओं से शिक्षा ली। इनका पृथ्वी पर अवतार मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को प्रदोष काल में हुआ था, जो इस बार 11 दिसंबर को है। इनकी गणना भगवान विष्णु के 24...

Dattatreya jayanti 2019: पूर्णिमा को प्रदोष काल में हुआ था भगवान दत्तात्रेय  का जन्म, भगवान विष्णु के 24 अवतारों में छठे स्थान हैं भगवान दत्तात्रेय
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीTue, 10 Dec 2019 10:07 AM
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भारत में दत्तात्रेय एक ऐसे अवतार हैं, जिन्होंने 24 गुरुओं से शिक्षा ली। इनका पृथ्वी पर अवतार मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को प्रदोष काल में हुआ था, जो इस बार 11 दिसंबर को है। इनकी गणना भगवान विष्णु के 24 अवतारों में छठे स्थान पर की जाती है। मान्यता है कि ये स्मरण करने मात्र से ही अपने भक्तों के पास पहुंच जाते हैं। इसीलिए इन्हें ‘स्मृतिमात्रानुगन्ता’ या ‘स्मर्तृगामी’ भी कहा गया है। आदि शंकराचार्य ने भगवान दत्तात्रेय की स्तुति में लिखा है- ‘आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णुरन्ते देव: सदाशिव:
मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते॥
ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वस्त्रे चाकाशभूतले
प्रज्ञानघनबोधाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते॥’

जो आदि में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अन्त में सदाशिव है, उन भगवान दत्तात्रेय को बार-बार नमस्कार है। ब्रह्मज्ञान जिनकी मुद्रा है, आकाश और भूतल जिनके वस्त्र हैं तथा जो साकार प्रज्ञानघन स्वरूप है, उन भगवान दत्तात्रेय को बार-बार नमस्कार है। 
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार, एक बार महर्षि अत्रि ने भगवान विष्णु को पुत्र के रूप में पाने की इच्छा की। भगवान विष्णु ने महर्षि अत्रि की इच्छा को सम्मान देते हुए स्वयं को उन्हें दे दिया। भगवान दत्तात्रेय के नाम में इस भाव को देखा जा सकता है। यह दत्त और आत्रेय के संयोग से बना है। ‘दत्त’ यानी दिया हुआ और आत्रेय यानी अत्रि का पुत्र। इनकी माता देवी अनुसूइया थीं। 

गुजरात का गिरनाथ क्षेत्र श्री दत्तात्रेय का सिद्धपीठ है। इसके अलावा इनके मुख्य तीर्थों में वाराणसी, पंढरपुर, प्रयागराज, उडुपी, श्रीनगर, आबू पर्वत आते हैं। इन्हें त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु और महेश का अंश माना जाता है। इसीलिए इनके तीन सिर और छह भुजाएं हैं। इनके साथ हमेशा पृथ्वी रूप में गाय और वेद के रूप में चार श्वान रहते हैं। दत्तात्रेय तीनों ईश्वरीय शक्तियों से संपन्न थे।

श्रीमद्भागवत में दत्तात्रेय जी ने कहा है- अपनी बुद्धि के अनुसार मैंने बहुत से गुरुओं का आश्रय लिया। इनके 24 गुरु किसी न किसी रूप में प्रकृति और मनुष्यता के संदेश का संकेत करते हैं। इनके 24 गुरुओं में- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, समुद्र , चंद्रमा व सूर्य जैसे आठ प्रकृति तत्व हैं। वहीं झींगुर, सर्प, मकड़ी, पतंग, भौंरा, मधुमक्खी, मछली, कौआ, कबूतर, हिरण, अजगर व हाथी सहित 12 जंतु शामिल हैं। इनके चार मानवीय गुरुओं में बालक, लोहार, कन्या और पिंगला नामक वेश्या भी शामिल हैं।
दत्तात्रेय ने मानवता को यह संदेश दिया है कि हमें जिससे भी किसी न किसी रूप में कोई भी शिक्षा मिली, वे हमारे गुरु हुए। दूसरे शब्दों में कहें, तो हर किसी से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है।    स्वप्निल डागुर

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