Pradosh Vrat August 2021: गुरु प्रदोष व्रत आज, भगवान शंकर की इन मुहूर्त में भूलकर भी न करें पूजा, यहां पढ़ें संपूर्ण व्रत कथा
प्रदोष व्रत आज यानी 5 अगस्त, दिन गुरुवार को है। गुरुवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोष व्रत कहा जाता है। हर दिन आने वाले प्रदोष व्रत का अलग-अलग महत्व होता है। प्रदोष व्रत हर माह के...
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प्रदोष व्रत आज यानी 5 अगस्त, दिन गुरुवार को है। गुरुवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोष व्रत कहा जाता है। हर दिन आने वाले प्रदोष व्रत का अलग-अलग महत्व होता है। प्रदोष व्रत हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को रखा जाता है। मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
प्रदोष व्रत में भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि प्रदोष व्रत की पूजा के अंत में व्रत कथा का पाठ या श्रवण करना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से व्रती को शुभफलों की प्राप्ति होती है। जानिए गुरु प्रदोष व्रत कथा और किन मुहूर्त में न करें भगवान शिव की पूजा-
आज के अशुभ मुहूर्त-
राहुकाल - दोपहर 01 बजकर 30 मिनट से 03 बजे तक।
यमगंड- सुबह 06 बजे से 07 बजकर 30 मिनट तक।
गुलिक काल- सुबह 09 बजे से 10 बजकर 30 मिनट तक।
दुर्मुहूर्त काल- सुबह 10 बजकर 13 मिनट से 11 बजकर 06 मिनट तक। इसके बाद दोपहर 03 बजकर 35 मिनट से 04 बजकर 28 मिनट तक।
वर्ज्य काल- दोपहर 01 बजकर 36 मिनट से 03 बजकर 20 मिनट तक।
गुरु प्रदोष व्रत कथा-
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार इंद्र और वृत्तासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ। देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर नष्ट-भ्रष्ट कर डाला। यह देख वृत्तासुर अत्यंत क्रोधित हो स्वयं युद्ध को उद्यत हुआ। आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया। सभी देवता भयभीत हो गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहूंचे। बृहस्पति महाराज बोले- पहले मैं तुम्हें वृत्तासुर का वास्तविक परिचय दे दूं।
वृत्तासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है। उसने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया। पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था। एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया। वहां शिवजी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहासपूर्वक बोला- ‘हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं किंतु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे।’
चित्ररथ के यह वचन सुन सर्वव्यापी शिवशंकर हंसकर बोले- ‘हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है। मैंने मृत्युदाता-कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारणजन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो!’ माता पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ से संबोधित हुईं- ‘अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्वर के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है अतएव मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे संतों के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा- अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे शाप देती हूं।’
जगदम्बा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्तासुर बना। गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- ‘वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है अत हे इंद्र! तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो।’ देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इंद्र ने शीघ्र ही वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शांति छा गई। अत: प्रदोष व्रत हर शिव भक्त को अवश्य करना चाहिए।