भगवान राम के धनुष की शक्ति : देखि राम रिपुदल चलि आवा बिहसि कठिन कोदण्ड चढ़ावा
‘यजुर्वेद’ के उपवेद ‘धनुर्वेद’ में धनुर्विद्या के संबंध में विस्तार से वर्णन है। इसमें ब्रह्मांड के पांच सबसे शक्तिशाली धनुषों का भी वर्णन हैं। इसमें भगवान राम के ‘कोदण्ड’ धनुष की विशेषता बताते हुए कह
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‘यजुर्वेद’ के उपवेद ‘धनुर्वेद’ में धनुर्विद्या के संबंध में विस्तार से वर्णन है। इसमें ब्रह्मांड के पांच सबसे शक्तिशाली धनुषों का भी वर्णन हैं। इसमें भगवान राम के ‘कोदण्ड’ धनुष की विशेषता बताते हुए कहा गया है कि इससे छोड़ा गया बाण कभी निष्फल नहीं होता था। इस धनुष का प्रयोग उन्होंने विशेष परिस्थितियों में ही किया।
भगवान राम को समुद्र देवता से विनती करते हुए तीन दिन बीत गए। लेकिन समुद्र पर उनकी प्रार्थना का कोई असर नहीं हुआ। उन्होंने श्रीराम को लंका पर चढ़ाई करने के लिए मार्ग नहीं दिया। तब राम ने क्रोध में अपने धनुष पर बाण चढ़ाया ही था कि समुद्र देवता उनके सामने प्रकट होकर क्षमा मांगने लगे। उन्होंने भगवान राम को समुद्र पर सेतु निर्माण का उपाय भी बताया। भगवान राम ने समुद्र को दंड देने के लिए जो धनुष उठाया था, उसका नाम ‘कोदण्ड’ था। ‘कोदण्ड’ यानी बांस का बना हुआ। ऐसा माना जाता है कि यह साढ़े पांच हाथ लंबा था और इसे धारण करने की सामर्थ्य राम के अतिरिक्त किसी और में नहीं थी। इस धनुष की विशिष्टता का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि इसके नाम पर ही भगवान राम का एक नाम ‘कोदण्ड राम’ भी है। इस धनुष की महिमा ऐसी थी कि इससे छोड़ा गया बाण अपने लक्ष्य को भेदे बिना वापिस नहीं लौटता था।
एक बार श्रीराम की शक्ति को चुनौती देने के उद्देश्य से देवराज इंद्र के पुत्र जयंत ने कौवे का रूप धारण किया और सीताजी के पांव में चोंच मारकर उड़ गया। श्रीराम को जब इसका पता चला और उन्होंने देखा कि सीताजी के पांव से रक्त बह रहा हैतो उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्होंने एक सरकंडे को बाण बनाकर संधान किया। बाण कौवे के रूप में जयंत का पीछा करने लगा। प्राण संकट में देखकर जयंत अपने पिता इंद्र के पास पहुंचा। लेकिन जब इंद्र को इस घटना का पता चला तो उन्होंने भी श्रीराम के बाण से उसकी रक्षा करने में असमर्थता व्यक्त कर दी। जयंत सभी देवी-देवताओं के पास अपनी रक्षा के लिए गया लेकिन सभी ने उसकी उस बाण से रक्षा करने में असमर्थता दिखाई। यह देखकर जयंत निराश हो गया। उसे समझ आ गया कि उससे बहुत बड़ी भूल हो गई है। अब उसकी मृत्यु निकट है। उसे निराश देखकर नारद जी ने जयंत से कहा कि इस बाण से तुम्हें प्रभु राम के अतिरिक्त और कोई नहीं बचा सकता। तुम उन्हीं की शरण में जाओ। हारकर जयंत को भगवान राम की शरण में जाना पड़ा, तब उसके प्राण बचे। लेकिन उसे इस अपराध के लिए दंड मिला। वह बाण निष्फल नहीं हो सकता था। श्रीराम की कृपा से उस बाण ने जयंत के प्राण तो नहीं लिए, लेकिन उसकी एक आंख हर ली।