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शारीरिक नहीं शाब्दिक और भावनात्मक हिंसा भी है घातक

महाभारत में ‘अहिंसा’ एक मनुष्य की सबसे बड़ी जिम्मेदारी मानी गई है. अहिंसा का संकल्प लेते ही ये आपकी बातों और व्यवहार में भी झलकने लगता है। एक अहिंसक व्यक्ति हिंसा के हर हालात से दूर रहता...

शारीरिक नहीं शाब्दिक और भावनात्मक हिंसा भी है घातक
लाइव हिन्दुस्तान टीम,मुरादाबादMon, 12 Mar 2018 10:40 AM
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महाभारत में ‘अहिंसा’ एक मनुष्य की सबसे बड़ी जिम्मेदारी मानी गई है. अहिंसा का संकल्प लेते ही ये आपकी बातों और व्यवहार में भी झलकने लगता है। एक अहिंसक व्यक्ति हिंसा के हर हालात से दूर रहता है, फिर चाहे वह भावनात्मक हो, शाब्दिक या शारीरिक हिंसा। ऐसा नहीं है कि सिर्फ शारीरिक हिंसा ही दूसरे को कष्ट पहुंचाती है। शाब्दिक या भावनात्मक हिंसा भी दूसरे के लिए उतनी ही घातक है जितनी शारीरिक हिंसा।

अन्य लोगों की तुलना में ऐसा इंसान व्यवहार में ज्यादा मिलनसार, विनम्र, सहिष्णु और विचारशील होता है। ऐसे लोग किसी को दुख नहीं पहुंचाते या इनसे किसी को कोई वैर-भाव नहीं होता। लेकिन एक इंसान जो इसपर विश्वास नहीं करता, हो सकता है कि कभी वो अपने बचाव के लिए ही बंदूक रखता हो लेकिन ये उसको हिंसक व्यवहार के लिए उकसाता है। ऐसा व्यवहार उसे समाज से अलग करता है और कोई भी उससे जुड़ नहीं पाता। ऐसे लोग अक्सर आपको अहिंसक व्यवहार पर बहस करते मिल जाएंगे कि अच्छे लोगों के साथ अच्छा ही हो ये जरूरी नहीं है।

यहां सूक्ष्म बल कार्य करते हैं। जिसने अपने मन के हिंसक भावों, सोच और शब्दों से खुद को अलग कर लिया, वास्तव में ऐसे ही लोग शांत होते हैं। उनके इस शांत भाव से निकली सूक्ष्म तरंगें उनके आसपास के वातावरण और लोगों के व्यवहार को भी प्रभावित करती हैं। यही कारण है कि ऐसे लोगों के आसपास के माहौल में भी शांति होती है और लोग भी शांत व्यवहार के होते हैं। पूजा स्थल इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं, जो भले ही कितनी भी व्यस्त और भीड़भाड़ भरी जगह में हों, लेकिन आपको वहां शांति महसूस होती है और सुकून का एहसास होता है।

ऐसा इसलिए क्योंकि वहां लोग सकारात्मक सोच, शांत विचार और पावन भावना के साथ जाते हैं। मनुष्य की सोच के अनुसार ही उसके आसपास के वातावरण का निर्माण भी होता है। यही कारण है कि जहां परेशान, क्रोधी, क्षुब्ध या निराश प्रकृति के लोग होते हैं, वहां का वातावरण भी कुछ इसी प्रकार का होता है।ये सूक्ष्म किरणें ही हैं जो किसी से बात करते हुए हमारे प्रति सामने वाले के व्यवहार को प्रभावित करती हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों कई बार आपकी मीठी बातें और मुस्कुराता हुआ चेहरा भी उस इंसान को प्रभावित कर पाने में नाकाम होता है जिसके प्रति वास्तव में आपके मन में अच्छे विचार नहीं होते? ऐसा इसीलिए क्योंकि आपके मन के नकारात्मक भाव उन तक संचरित हो रहे होते हैं।

दूसरी तरफ एक शांत चित्त मनुष्य के आसपास हमेशा शांति महसूस होती है। उनके विरोधी भी उनके प्रंशसक होते हैं। दुनिया के हर प्राणी और यहां तक कि प्रकृति पर भी यह नियम लागू होता है। बुरी प्रवृत्ति के लोग भी ऐसे लोगों की संगति में अपनी बुराई छोड़ देते हैं, यहां तक कि ऐसे लोगों के आसपास रहने पर जंगली जानवर तक शांत हो जाते हैं और प्रकृति भी उनकी सहयोगी बन जाती है।

यहां क्रिया और प्रतिक्रिया का नियम या यूं कहें कि ‘कर्म का नियम’ काम करता है। कई बार आपको अपने इसी जन्म या पूर्व जन्म के कर्मों के परिणाम स्वरूप हिंसा का शिकार होना पड़ता है,  लेकिन ये हिंसक प्रतिक्रियाएं आपकी कार्मिक आसक्ति का प्रतीक हैं। अगर हम एक हिंसक वृत्ति का भी शांतिपूर्वक सामना करें, तो हमारे कर्मों का बोझ कुछ कम हो सकता है और ये हिंसा भी कम हो जाएगी।

(साभार- ब्रह्म कुमारीज)

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