नवरात्रि 2018: सौम्य रूप में होती मां ताराचंडी की पूजा
किसी भी देवी की दो रूपों में पूजा होती है। एक तांत्रिक व दूसरा सौम्य। लेकिन, सासाराम में कैमूर पहाड़ी की तराई में अवस्थित मां ताराचंडी की पूजा सौम्य रूप में होती है। सौम्य पूजा स्नान करके मां के धाम...
किसी भी देवी की दो रूपों में पूजा होती है। एक तांत्रिक व दूसरा सौम्य। लेकिन, सासाराम में कैमूर पहाड़ी की तराई में अवस्थित मां ताराचंडी की पूजा सौम्य रूप में होती है। सौम्य पूजा स्नान करके मां के धाम में किया जाता है। जबकि तांत्रिक पूजा श्मशान में होती है। सासाराम में भगवती दो रूपों में विराजमान है। एक तारा और दूसरा रूप है चंडी का। मां तारा दस महाविद्याओं में दूसरी हैं। जबकि चंडी देवी दुर्गा का ही एक रूप या नाम है।
पुराण में वर्णित तथ्यों के अुनसार सती द्वारा अपनी जाग्रत अवस्था में पूर्ण प्रभावशाली होकर भगवान शंकर को अपनी माया के दस रूपों से बांधने वाली दस महाविद्याओं में दूसरी माया का नाम मां तारा है। भगवती तारा के भी तीन रूप हैं। तारा, एकजटा और नील सरस्वती। शिवपुराण, महाभारत और श्रीमद्भागवत में इसकी चर्चा है। इन ग्रंथों में तारा का अर्थ और मां की महिमा का बखान किया गया है। इतिहासकारों के अनुसार बौद्ध और जैन संप्रदायो में भी मां तारा की महत्ता रही है। बौद्ध दर्शन में सृष्टि के मूल में आदि बुद्ध को विश्वपिता तो आदि प्रज्ञा या प्रज्ञापरमिता को आदिमाता माना जाता है। वज्रयान मत में इनसे पंचध्यानी बुद्ध उत्पंन हुए और उनसे बोधिसत्व। पंचध्यानी बुद्ध की शक्तियों को नारी रूप में अभिव्यक्त किया गया है, जिसे तारा कहा गया है। इतिहासकार डा. श्याम सुन्दर तिवारी की पुस्तक मां ताराचंडी धाम में भी ताराचंडी के दो रूपों की चर्चा की गई है।
सासाराम के ताराचंडी धाम में 1169 ई. से पहले भी पूजा हुआ करती थी। धाम पर बारहवीं सदी के खरवार राजा धवल प्रताप देव के शिलालेख से इसकी पुष्टि होती है। यहां शारदीय व चैत्र नवरात्र में मेला लगता है। शाम की आरती के समय काफी भीड़ जुटती है। धाम के सटे सोनवागढ़ के शिव मंदिर भी प्राचीन है। जहां बारहवीं सदी में राजा पूजा करने आते थे।