Paush Purnima: कल्पवासी एक माह में बटोरेंगे सालभर की शक्ति, पौष पूर्णिमा पर लाखों श्रद्धालु लगाएंगे डुबकी, जानें कल्पवास के नियम
माघ मेला का पहला स्नान पर्व पौष पूर्णिमा 10 जनवरी शुक्रवार को है। इस बार मेले के पहले स्नान पर्व के साथ ही कल्पवास शुरू हो जाएगा। इसलिए कल्पवासी माघ मेले के सभी पर्वों पर स्नान-दान का पुण्य प्राप्त...
माघ मेला का पहला स्नान पर्व पौष पूर्णिमा 10 जनवरी शुक्रवार को है। इस बार मेले के पहले स्नान पर्व के साथ ही कल्पवास शुरू हो जाएगा। इसलिए कल्पवासी माघ मेले के सभी पर्वों पर स्नान-दान का पुण्य प्राप्त करेंगे। जीवन-मृत्यु के बंधनों से मुक्ति की कामना लेकर माघ मेला में आने वाले कल्पवासी यहां से तमाम अलौकिक शक्ति बटोरकर ले जाएंगे। माघी पूर्णिमा के दिन कल्पवास का समापन होगा।
मन के साथ तन की शुद्धि
वरिष्ठ आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सक डॉ. टीएन पांडेय के अनुसार, कल्पवास के दौरान दिनचर्या बदल जाती है। हवा, पानी और भोजन तीनों शुद्ध रूप में मिलता है। इससे न केवल आध्यात्मिक बल्कि मानसिक और शारीरिक शुद्धीकरण हो जाता है। यहां तक कि रेत पर चलने से डिप्रेशन और जोड़ों के दर्द में भी आराम मिलता है।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भी किया था कल्पवास
प्रयाग में कल्पवास की पुरानी परंपरा है। शास्त्रों के अनुसार, 1882 में राजाओं ने कल्पवास किया था। इसमें विजयनगर, भरतपुर, बनारस, बेतिया और बांसी के राजा शामिल थे। देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने 1954 में कुंभ मेले में किले में कल्पवास किया था।
घर से तुलसी का बिरवा लेकर आए
कल्पवासियों को अपने शिविर के सामने तुलसी का पौधा रोपने और जौ बोने की सनातन परंपरा है। वैदिक संस्कृति में तुलसी और जौ को सबसे ज्यादा पूज्यनीय माना जाता है। इसलिए कल्पवासी अपनी गृहस्थी के साथ घर से तुलसी का बिरवा भी साथ लेकर आते हैं।
कल्पवास के नियम
पद्यपुराण के अनुसार, कल्पवास के 21 नियम बताए गए हैं, इसमें मुख्य नियम इस प्रकार हैं। झूठ नहीं बोलना चाहिए, घर-गृहस्थी की चिंता से मुक्त होना चाहिए, गंगा में दो बार स्नान करना चाहिए, शिविर में तुलसी का बिरवा रोपना चाहिए, ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए, खुद या पत्नी का बनाया खाना चाहिए, सत्संग में भाग लेना चाहिए, इंद्रियों पर संयम रखना चाहिए, पितरों का पिंडदान करना चाहिए, हिंसा, विलासिता और परनिंदा से दूर रहना चाहिए, जमीन पर सोना चाहिए।
स्नान, दान का शुभ मुहूर्त
उत्थान ज्योतिष संस्थान के पं. दिवाकर त्रिपाठी 'पूर्वांचली' के अनुसार, पूर्णिमा तिथि शुक्रवार को सुबह 6:44 बजे शुरू हो जाएगी। यह पूरे दिन रहकर रात 1:02 बजे समाप्त होगी। स्नान, दान और कल्पवास का मान शुक्रवार को रहेगा।
आसपास के जिलों, पड़ोसी राज्यों से पहुंचे लोग
संगम की रेती पर शुक्रवार से शुरू हो रहे कल्पवास के लिए श्रद्धालुओं का रेला बुधवार से आने लगा। खराब मौसम के बावजूद सुबह से कोरांव, मेजा, मांडा, कौशाम्बी, सोरांव, हंडिया, नवाबगंज, मऊआइमा, जौनपुर, मध्य प्रदेश से बड़ी संख्या में कल्पवासी अपनी गृहस्थी के साथ पहुंचे। कोरांव के सुरेन्द्र द्विवेदी ने बताया कि 12 साल के कल्पावास का संकल्प है, इसलिए परिस्थितियां कैसी भी हों, संकल्प पूरा करना होगा। बहरिया के माता प्रसाद ने बताया कल्पवास से गंगा मइया की कृपा बनी रहती है।