पर्वाधिराज कहलाता है यह पावन पर्व
भाद्रपद मास में मनाए जाने वाला पर्यूषण पर्व को पर्वों का राजा कहा जाता है। आत्मशुद्धि करने वाला यह पर्व मनुष्य के जीवन में संजीवनी का काम करता है। पर्युषण पर्व को जैन समाज में सबसे बड़ा पर्व माना जाता
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भाद्रपद मास में मनाए जाने वाले पर्यूषण पर्व को पर्वों का राजा कहा जाता है। आत्मशुद्धि करने वाला यह पर्व मनुष्य के जीवन में संजीवनी का काम करता है। पर्युषण पर्व को जैन समाज में सबसे बड़ा पर्व माना जाता है, इसलिए इसे पर्वाधिराज भी कहा जाता है। इस पर्व में संकल्प लिया जाता है कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी जीव को कभी भी किसी प्रकार का कष्ट नहीं पहुंचाएंगे। किसी से कोई बैर भाव नहीं रखेंगे। इस पर्व के दौरान पांच सिद्धांत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह व्रत का पालन किया जाता है।
श्वेताम्बर पर्यूषण पर्व को भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी तक मनाते हैं, जबकि दिगंबर संप्रदाय के लोग इस महापर्व को भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी से चतुर्दशी तक मनाते हैं। इस पर्व में शामिल होने वाले आठ दिनों के लिए उपवास रखने का प्रण करते हैं, इसे अटाई कहा जाता है। इस पर्व पर जिनालयों और जैन मंदिरों में सुबह प्रवचन और शाम के समय धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस पर्व में नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि योग जैसी साधना तप-जप मानव जीवन को सार्थक बनाता है। इस पर्व में दस धर्मों उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन एवं उत्तम ब्रह्मचर्य को धारण किया जाता है। इसे दसलक्षण पर्व भी कहा जाता है। यह दस धर्म जीने की कला सिखाने के साथ पाप को दूर करते हैं। इस पर्व की मुख्य बातें भगवान महावीर के मूल पांच सिद्धांतों पर आधारित है। अहिंसा यानी किसी को कष्ट नहीं पहुंचाना, सत्य, अस्तेय यानी चोरी न करना, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह यानी जरूरत से ज्यादा धन एकत्रित न करना। श्वेतांबर समाज पर्युषण पर्व के समापन पर संवत्सरी पर्व मनाता है, जबकि दिगंबर समाज पर्युषण के समापन पर क्षमावाणी पर्व मनाता है।
इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
