नवरात्रि में प्रतिपदा के दिन कलश स्थाना के साथ माता रानी के ज्वारे भी बोए जाते हैं। मिट्टी के कलश में ज्वारे बोने की परंपरा तकरीबन हर जगह होती है। नवरात्रि के समापन पर इन्हें प्रवाहित कर दिया जाता है। इनके बढ़ने पर मां भगवती की कृपा मिलती है।
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ऐसा कहा जाता है कि जहां ज्वारें तेजी से बढ़ते हैं ऐसे घर में माता रानी का आशीर्वाद मिलता है और सुखसमृद्धि आती है। ज्वारों को सही मुहूर्त में माता रानी की चौकी के पास ही बोया जाता है। नवरात्रि में जौ इसलिए बोया जाता है क्योंकि सृष्टि की शुरुआत में जौ ही सबसे पहली फसल थी। जौ उगने या न उगने को भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान के तौर पर देखा जाता है।
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ज्वारे बोते समय इस बात का ध्यान रखें कि इन्हें रोज पूजा के समय पानी दें। मिट्टी के कलश में ही ज्वारें बोएं। इस बात का ध्यान रखें कि ज्वारों को दक्षिण दिशा में नहीं रखना चाहिए। दक्षिण दिशा यम की दिशा मानी जाती है। इस दिशा में न ही माता का कलश रखें और न ही ज्वारे बोएं। नौ दिन में जहां ज्वारे बोए उन्हें उसी में ही स्थापित रहने दें। उन्हें निकाले नहीं।