क्रोध में दिए घाव कभी नहीं भरते
एक गांव में बहुत गुस्सैल युवक रहता था। बात-बात पर गुस्सा करना मानों उसकी आदत बन चुका था। जरा सी बात पर वह अपना आपा खो बैठता था। पूरा परिवार उसके गुस्से से परेशान आ चुका था। कई बार परिजनों ने उसे...
एक गांव में बहुत गुस्सैल युवक रहता था। बात-बात पर गुस्सा करना मानों उसकी आदत बन चुका था। जरा सी बात पर वह अपना आपा खो बैठता था। पूरा परिवार उसके गुस्से से परेशान आ चुका था। कई बार परिजनों ने उसे समझाया लेकिन उसका गुस्सा दूर नहीं हुआ। उसके पिता को एक उपाय सूझा। उन्होंने उसे बुलाया और कीलों से भरा एक थैला देते हुए कहा कि जब भी तुम किसी पर क्रोध करो तो इस थैले से एक कील निकालकर बाड़े में ठोंक देना।
पहले दिन उस युवक को कई बार गुस्सा आया और उसने हर बार एक कील निकालकर बाड़े में ठोंक दी। अगले दिन उसे गुस्सा कम आया और कीलों की संख्या भी घटने लगी। धीरे धीरे उसे लगने लगा कि कील ठोंकने में मेहनत करने से अच्छा है कि अपने क्रोध पर काबू कर लिया जाए। उस दिन से उसने क्रोध पर काबू करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे एक दिन ऐसा आया कि उसने किसी पर भी क्रोध नहीं किया। जब उसने अपने पिता को इस बारे में बताया तो उन्होंने उसे एक काम और दिया कि अब जिस दिन तुम क्रोध न करो उस दिन बाड़े में लगाई कीलों में से एक को निकाल देना। कुछ समय बाद उस युवक ने बाड़े में लगी आखिरी कील को भी निकाल दिया। उसने खुशी से यह बात अपने पिता को बताई। पिता उसे बाड़े में लाए और बोले तुमने बहुत अच्छा काम किया है। लेकिन बाड़े में हुए सुराख को तुम भर नहीं सकते। जब तुम क्रोध में कुछ कहते हो तो वो शब्द भी इसी तरह सामने वाले व्यक्ति पर गहरे घाव छोड़ जाते हैं। इसलिए अगली बार क्रोध करने से पहले यह सोच लें कि ये सामने वाले पर कितना गहरा घाव छोड़ सकते हैं।