ग्रंथ गोभिलगृह्यसूत्र में उल्लिखित मिलता है सूर्यचंद्रमसौर्य: पर: सन्निकर्ष: अमावस्या अर्थात सूर्य व चंद्रमा जब एक ही राशि पर आते हैं तो उसे अमावस्या और जब मकर राशि पर आते हैं तो उसे मौनी अमावस्या कहा जाता है। ऐसा वर्ष में केवल एक बार माघ के महीने में होता है। इस वर्ष यह अमावस्या 11 फरवरी को पड़ रही है।
महर्षि पुलस्त्य के अनुसार मौनी अमावस्या के दिन जप-तप-दान-पुण्य आदि करने से अक्षय फल की प्राप्त होती है। इस दिन पवित्र नदियों के जल में स्नान और मौन व्रत का विशेष महत्व है। मौनी अमावस्या पर पितरों का तर्पण करने की भी परंपरा है। माना जाता है कि इस दिन के दान से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन मौन व्रत रखने की परंपरा के पीछे भी
कारण हैं।
एक अर्थ में मौन को आत्म-संवाद की भाषा भी कहा जा सकता है। मौन आत्मबल का अनंत स्रोत है। यह अनंत ऊर्जा के संचयन का प्रतीक भी है। साहित्य मनीषी सत्यकाम विद्यालंकार ने इसके अनंत स्रोत के बारे में ठीक ही कहा है कि ‘हमारे अंदर जो आत्मबल का अनंत स्रोत है, वह हमें मौन से मिल सकता है। वह इतना बल दे सकता है कि हम सारा जीवन उससे शक्ति ग्रहण करते रहें, फिर भी वह असीम बना रहेगा।’ मौन एकाग्रता में भी साधक माना गया है। पर वह कैसे? कथा है कि महाभारत लिखते समय भगवान गणेश एक शब्द भी न बोले थे।
कार्य समाप्त होने पर व्यास जी ने पूछा, तो उन्होंने कहा था कि यदि बोलता तो यह कार्य कठिन हो जाता। भगवान कहते हैं, आत्मा में मन को स्थिर करके ‘न किंचिदपि चिंतयेत’ दूसरा कुछ भी चिंतन न करें। आर्ष ग्रंथों के अनुसार, मौन अवस्था में भगवद्भक्ति वेग से मनुष्य की ओर बढ़ती है। संत कबीरदास ‘मौन’ की अमोघ शक्ति के बारे में कहते हैं, ‘बाद विवादे विष घना, बोले बहुत उपाध। मौन गहे सबकी सहै, सुमरै नाम अगाध’। मौन रहकर हम अपने भीतर की शक्तियों को दोगुना कर सकते हैं।