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Makar Sankranti 2020: त्याग, वैराग्य, कर्म और सत्य की क्रांति का पर्व है मकर संक्रांति

Makar Sankranti 2020: हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार दान-पुण्य का महापर्व मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाया जाएगा। संक्रांति का अर्थ है क्रांति। इससे तात्पर्य है- सत्य के संग क्रांति, संत के संग...

Manju Mamgain आनंदमूर्ति गुरुमां, नई दिल्लीTue, 14 Jan 2020 08:46 PM
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Makar Sankranti 2020: त्याग, वैराग्य, कर्म और सत्य की क्रांति का पर्व है मकर संक्रांति

Makar Sankranti 2020: हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार दान-पुण्य का महापर्व मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाया जाएगा। संक्रांति का अर्थ है क्रांति। इससे तात्पर्य है- सत्य के संग क्रांति, संत के संग क्रांति। जिसके जीवन में संत नहीं है, उनका संग नहीं है, उसके जीवन में कभी क्रांति नहीं होती।

मकर संक्रांति से सूर्य की किरणें उत्तरी गोलार्ध में प्रखर होने लगती हैं। सूर्य देव की गति तेज हो जाती है। मनुष्यों में भी नई ऊष्मा, नई ऊर्जा का प्रवाह होता है। मकर संक्रांति का पर्व त्याग और तप का भी संदेश देता है। यह क्रांति यानी परिवर्तन का संदेश देता है

जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तब मकर संक्रांति होती है। इस दिन से अगले छह महीने के लिए उत्तरायण पक्ष शुरू हो जाता है। इसको देवताओं का काल भी कहते हैं। इससे पहले के छह महीने, जिसे हम दक्षिणायण पक्ष कहते हैं, उसमें देवता सोए हुए होते हैं। इसलिए राक्षसों की तमोगुणी वृत्तियों का वर्चस्व होता है।

मकर संक्रांति को पंजाबी में संक्रांत बोलते हैं और हिंदी में संक्रांति बोलते हैं। सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं और मकर राशि, शनि की राशि मानी जाती है। आमतौर पर लोग बोलते हैं कि शनि बुरा होता है, पर सच यह है शनि तप देते हैं। कोई भी तपस्वी हो, महात्मा हो, उसके ग्रह-नक्षत्रों की सूची में शनि की स्थिति बहुत अच्छी होती है।

शनि के प्रभाव से वह व्यक्ति बहुत कठोर तप कर सकता है। शनि वैराग्य का चिह्न हैं, इन्हें शिव जी का अंश भी बोलते हैं। शनि सूर्य-पुत्र भी हैं, शिवांश भी हैं, तो इसका अर्थ यह हुआ कि सूर्य जैसा तेज, तप और उज्ज्वलता जीवन में आ सकती है, शिव जी जैसा तप, वैराग्य, योग जीवन में आ सकता है।

जो चीज संसार के लिए बुरी है, वह अध्यात्म के लिए बहुत अच्छी होती है। वैराग्य आना तो अच्छी बात है। जीवन में तप आए, तो इससे बढि़या और क्या हो सकता है! अभी आपका सबसे बड़ा शत्रु आपका आलस्य है। आलस्य होता है, तभी पौष महीने की सर्दी में सुबह उठना मुश्किल लगता है।

ऐसा व्यक्ति तप कैसे करेगा? तप करने के लिए तो मोटे कपड़ों की परत से बाहर आना पड़ेगा। जो लोग ज्योतिष नहीं समझते हैं, वे अजीब-अजीब धारणाएं बना लेते है। लेकिन सच यह है कि शनि तप देते हैं, शनि वैराग्य देते हैं। शनि ज्ञान के देवता हैं। शनि मतलब कि आपके मन में त्याग के, वैराग्य के, ज्ञान के, सेवा के विचार उठने लग जाते हैं।

ऐसे तो संक्रांति हर महीने आती है, पर सूर्य का मकर राशि में आना, यह मकर संक्रांति है। यह विशेष हो जाती है। इस दिन लोग दान करते हैं- तिल का दान, गुड़ का दान, गाय को चारा देना वगैरह। पवित्र नदियों में स्नान करते हैं- गंगा-स्नान, त्रिवेणी स्नान।

असली स्नान तो ज्ञान का है। जो ज्ञान का स्नान न कर सके, वही गंगा में स्नान करने जाएगा। जिसने अपने मन के अंदर ही गंगा को जाग्रत कर लिया है, उसे कहीं जाने की जरूरत नहीं होती है। संत रैदास जी का कथन है,‘जो मन चंगा तो कठौती में गंगा।'मन चंगा हो, तो इसी मन के बर्तन में गंगा जी प्रगट हो जाएंगी।

अध्यात्म मार्ग में मकर संक्रांति का विशेष महत्व है। संक्रांति से पहले लोहड़ी होती है, जिसमें रात्रि को अग्नि प्रज्वलित की जाती है। लोहड़ी वास्तव में एक यज्ञ है, जिसकी अग्नि में साधक अपनी सब कमियों, कमजोरियों और आलस्य को जला देता है और मकर संक्रांति से एक नई शुरुआत करता है। संक्रांति माने क्रांति। संक्रांति से मतलब है- सत्य के संग क्रांति, संत के संग क्रांति। जिसके जीवन में संत नहीं है, उसके जीवन में कभी क्रांति नहीं होती। उनके जीवन में सिर्फ अशांति होती है, क्योंकि वस्तुओं से ही मोह होता है।

कोई वस्तु मिल गई तो खुश हो जाएगा, नहीं मिली तो रोता रहेगा। व्यक्तियों से मोह होगा, कोई प्यार करेगा तो बड़ा खुश होगा और प्यार नहीं करेगा तो बैठकर रोएगा कि हाय! मुझे कोई प्यार नहीं करता। वस्तुओं के और व्यक्तियों के पीछे भागता है, तो दुख पाता है और संत के संग रहता है, तो वह यह जानता है कि मुझे बाहर कुछ ढूंढ़ने की जरूरत है ही नहीं। मेरा आनंद तो मुझ ही में है, क्योंकि मैं अस्ति-भाति-प्रिय स्वरूप हूं। ये देह मैं हूं नहीं, तो देह का जन्म मेरा नहीं, देह का मरण मेरा नहीं, देह का रोग मेरा नहीं, देह की अशुद्धि मेरी नहीं। मैं मन नहीं, तो मन के पाप-पुण्य मैं नहीं, मेरे नहीं।

मन की कमी, कमजोरी मैं नहीं, मेरी नहीं। मन के अशुद्ध विचार मैं नहीं, मेरे नहीं। मैं तो नित्यमुक्त, सच्चिदानंद, अनादि अनंत, निर्वचनीय विलक्षण स्वरूप हूं, आत्मतत्व के निश्चय में रहता हूं। बाहर संसार में जो दिखता है, वो दिखती हुई हर वस्तु मिथ्या है, बदलने वाली है। जो बदलने वाला है, उसके साथ मैं अपना मन क्यों जोड़ूं? मेरा मन किसका मनन करेगा? मेरा मन आत्मतत्व का मनन करेगा।

साधक के लिए कहा गया कि मकर संक्रांति के दिन वह गुरु का दर्शन करे, दान करे, जप करे, स्नान करे। मैं तो कहती हूं कि अपने पूरे जीवन को प्रसन्नता से भरो, मुस्कुराहटों से भरो। निराशा से नहीं भरो, आशा से भी नहीं भरो, प्रभु की स्मृति से भरो, भक्ति से भरो, प्रेम से भरो, सेवा से भरो, जप से भरो। इनके साथ अपने जीवन को अच्छा रंग दो। संक्रांति को अपने मन में तप का रंग भरो।

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