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Mahavir Jayanti 2022: महावीर जयंती 2022 आज, जानें भगवान महावीर से जुड़ी खास बातें

महावीर कहते हैं कि एक तरफ तुम खुद ही अपने प्रमाद से गंदगी पैदा करोगे और फिर स्वच्छता के प्रयास करोगे, तो यह ठीक बात नहीं है। स्वच्छता उसे कहते हैं, जहां गंदगी पैदा ही न हो...

Mahavir Jayanti 2022: महावीर जयंती 2022 आज, जानें भगवान महावीर से जुड़ी खास बातें
प्रो. अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्लीThu, 14 Apr 2022 05:03 AM

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जैन धर्म के चौबीसवें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्मकल्याणक महोत्सव चैत्र शुक्ल त्रयोदशी (इस वर्ष 14 अप्रैल) के दिन सम्पूर्ण विश्व में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन को महावीर त्रयोदशी भी कहते हैं। उनका इस पवित्र धरा पर जन्म ईसा से छह सौ वर्ष पूर्व भले ही हुआ हो, किन्तु उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उस समय थे। हमें प्राचीन शास्त्रों के शाश्वत सिद्धांतों को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखना आना चाहिए।

भारतीय समाज में एक अनोखा आंदोलन भगवान महावीर ने ईसा की छठी शताब्दी पूर्व चलाया था। उस अभियान को हम शुद्धता का अभियान कह सकते हैं। भगवान महावीर ने दो तरह की शुद्धता की बात कही- अंतरंग शुद्धता व बहिरंग शुद्धता। क्रोध, मान, माया, लोभ ये चार कषायें हैं। ये आत्मा का मल-कचड़ा है।

भगवान महावीर ने मनुष्य में सबसे पहली आवश्यकता इस आंतरिक कचड़े को दूर करने की बताई। उनका स्पष्ट मानना था कि यदि क्रोध, मान, माया, लोभ और इसी तरह के अन्य हिंसा के भाव आत्मा में हैं तो वह अशुद्ध है और ऐसी अवस्था में बाहर से चाहे कितना भी नहाया-धोया जाए, वह सब व्यर्थ है।

भगवान महावीर ने भारतीय समाज में फैली तमाम बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया। उनके अभियान का यदि हम अभिप्राय समझें, तो यह अभिव्यक्त होता है कि ‘शुद्धता’ एक व्यापक दृष्टिकोण है, जिसका एक अंग है ‘स्वच्छता’।

अगर आपके भीतर जीवों के प्रति मैत्री, करुणा, दया या अहिंसा का भाव नहीं है और आप बाहरी साफ-सफाई सिर्फ इसलिए करते हैं कि आपको रोग न हो जाए, तो यह ‘स्वच्छता’ है। लेकिन इस क्रिया में आप साफ-सफाई इसलिए भी करते हैं कि दूसरे जीवों को भी कष्ट न हो, सभी स्वस्थ रहें, जीवित रहें तो अहिंसा का अभिप्राय मुख्य होने से वह ‘शुद्धता’ की कोटि में आता है।

भगवान् महावीर के प्रथम शिष्य गौतम गणधर ने हर बात पर अहिंसा-अहिंसा सुनकर एक बार उनसे पूछा कि हे भगवन्, ‘कहं चरे कहं चिट्ठे कहमासे कहं सए। कहं भुंजन्तो मासंतो पावं कम्मं न बंधई।।’ अर्थात् कैसे चलें? कैसे खड़े हों? कैसे बैठे? कैसे सोएं? कैसे खाएं? कैसे बोलें? जिससे पापकर्म का बंधन न हो। तब इस प्रश्न का समाधान करते हुए भगवान महावीर ने कहा- ‘जयं चरे जयं चिट्ठे जयमासे जयं सए। जयं भुंजन्तो भाजन्तो पावकम्मं न बंधई।।’ अर्थात् सावधानीपूर्वक चलो, सावधानीपूर्वक खड़े हो, सावधानीपूर्वक बैठो, सावधानीपूर्वक सोओ, सावधानीपूर्वक खाओ और सावधानी से वाणी बोलो तो पाप कर्म बंधन नहीं होता।

कहने का तात्पर्य क्रिया का निषेध नहीं है, बल्कि यह अपेक्षा है कि आप अपनी हर क्रिया में इतनी सावधानी रखें कि दूसरे जीवों को कष्ट न हो, तो उस क्रिया में पाप बंध नहीं होगा। 

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