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हल्दीघाटी की माटी आज भी बताती है महाराणा प्रताप की गौरव गाथा

भारतवर्ष के महान योद्धा महाराणा प्रताप को भारत का पहला स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है। वह मेवाड़ में सिसौदिया राजपूत राजवंश के राजा थे। महाराणा प्रताप अपनी वीरता और युद्ध कला के लिए जाने जाते हैं।...

हल्दीघाटी की माटी आज भी बताती है महाराणा प्रताप की गौरव गाथा
लाइव हिन्दुस्तान टीम,meerutMon, 20 Jan 2020 02:51 AM
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भारतवर्ष के महान योद्धा महाराणा प्रताप को भारत का पहला स्वतंत्रता सेनानी माना जाता है। वह मेवाड़ में सिसौदिया राजपूत राजवंश के राजा थे। महाराणा प्रताप अपनी वीरता और युद्ध कला के लिए जाने जाते हैं। हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप और अकबर के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध को 300 साल हो चुके हैं, पर आज भी वहां युद्ध मैदान में तलवारें पाई जाती हैं। इस युद्ध में ना तो अकबर की जीत हुई और ना ही महाराणा प्रताप की। कहा जाता है कि जब अकबर को महाराणा प्रताप के निधन का पता लगा तो वह भी रो पड़ा।

अकबर ने महाराणा प्रताप को प्रस्ताव दिया था कि यदि वे उसके सामने झुक जाते हैं तो आधा भारत महाराणा प्रताप का हो जाएगा परंतु उन्होंने यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। हल्दीघाटी का युद्ध 21 जून 1576 को लड़ा गया और दोनों सेनाओ के बीच भीषण युद्ध हुआ जो केवल चार घंटे में ही समाप्त हो गया। हल्दीघाटी युद्ध के बाद से और चेतक की मृत्यु से उनका दिल पसीज गया और उन्होंने मुगलों से जीतने तक महल त्यागकर जंगल में जीवन बिताने का निश्चय किया। महाराणा प्रताप के भाले का वजन 81 किलो था। उनके कवच का वजन 72 किलो था। महाराणा प्रताप भाला, ढाल, दो तलवारें, कवच लेकर युद्ध में जाते थे, जिसका कुल वजन 208 किलो होता था। इतना भार लेकर युद्ध करना सामान्य पुरुष के लिए संभव नहीं है। युद्ध में महाराणा प्रताप दो तलवार रखते थे। यदि उनके दुश्मन के पास तलवार नहीं होती थी तो उसे अपनी एक तलवार देते थे जिससे कि युद्ध बराबरी का हो। महाराणा प्रताप की तरह उनके सेनापति और सैनिक भी बहुत वीर थे। उनका एक सेनापति युद्ध में सिर कटने के बाद भी लड़ता रहा। महाराणा प्रताप वर्षों तक मेवाड़ के जंगलो में घूमे। लगातार 30 वर्षों तक प्रयास करने के बावजूद अकबर, महाराणा प्रताप को बंदी नहीं बना सका। महाराणा प्रताप ने अपने वंशजों को वचन दिया था कि जब तक वह चित्तौड़ वापस हासिल नहीं कर लेते, तब तक वह पुआल पर सोएंगे और पेड़ के पत्ते पर खाएंगे। आखिर तक महाराणा प्रताप को चित्तौड़ वापस नहीं मिला। उनके वचन का मान रखते हुए आज भी कई राजपूत अपने खाने की प्लेट के नीचे एक पत्ता रखते हैं और बिस्तर के नीचे सूखी घास का तिनका रखते हैं।

इस आलेख में दी गई जानकारियां लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।

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