Maha Shivaratri 2020: शिव महिमा-शिव सब देवों, मानवों के परमपिता
हमेशा मंगलकारी तथा सभी के कल्याणकारी सर्वेश्वर सदाशिव से शुभाशीष एवं वरदान प्राप्ति के लिए भक्तजन, खासतौर से शिवरात्रि के शुभ अवसर पर व्रत, उपवास, जागरण, शिव मंत्र उच्चारण आदि करते हैं, जिससे वे कुछ...
हमेशा मंगलकारी तथा सभी के कल्याणकारी सर्वेश्वर सदाशिव से शुभाशीष एवं वरदान प्राप्ति के लिए भक्तजन, खासतौर से शिवरात्रि के शुभ अवसर पर व्रत, उपवास, जागरण, शिव मंत्र उच्चारण आदि करते हैं, जिससे वे कुछ समय के लिए तन-मन की शांति, शुद्धता एवं संतुलन को प्राप्त करते हैं। केवल एक दिन या कुछ दिन के लिए नहीं, बल्कि सदा के लिए शिव की शक्ति और वरदानों से अपने जीवन को सुख-शांतिपूर्ण बनाने के लिए शिव, शिवत्व तथा शिव तत्व के बारे में जानकारी जरूरी है।
परमात्मा शिव सर्वोच्च सत्ता एवं शक्ति है, मनुष्य सृष्टि रूपी कल्प वृक्ष का बीज, दिव्य चेतन ज्योति बिन्दु स्वरूप ज्योतिर्लिंग है। जिनके दर्शन हेतु मानव के स्थूल नेत्र नहीं, अपितु आत्म ज्ञान दर्शन की दिव्य बुद्धि रूपी नेत्र चाहिए, जो परमात्मा शिव ही खोलते हैं या प्रदान करते हैं।
दिव्य ज्योति स्वरूप निराकार शिव सभी मनुष्य आत्माओं के परमपिता परमात्मा है। प्रकृति के पांच तत्व से बना शरीर या भौतिक जगत के जन्म-मृत्यु एवं परिवर्तन प्रक्रिया से परे परमात्मा शिव, अजोनि जन्मा, अजन्मा, अभोक्ता, प्रकृति पति, त्रिकाल दर्शी, त्रिलोकी नाथ, पारब्रह्म परमेश्वर, ब्रह्मलोक एवं परमधाम निवासी हैं। उनके ज्योति स्वरूप की याद में ही भारत के द्वादश ज्योतिर्लिंग पीठ प्रसिद्ध हैं।
इस निराकार ज्योति बिंदु स्वरूप स्थिति के कारण शिव सूक्ष्म शरीरधारी आकारी देवता शंकर जी से भी भिन्न हैं। शिव शब्द का अर्थ कल्याणकारी है, तो शंकर शब्द विनाश का द्योतक है। परमात्मा को त्रिमूर्ति शिव इसलिए कहा जाता है कि वे ब्रह्मा जी के द्वारा नई दैवी सृष्टि की रचना, विष्णु जी के द्वारा सृष्टि की पालना एवं शंकर देवता के द्वारा सृष्टि का विनाश यानी सम्पूर्ण परिवर्तन कराते हैं।
तभी उनके शिव लिंग के ऊपर तीन रेखाएं अंकित करते समय शिव के पुजारी ‘ब्रह्मा देवताय नम:', ‘विष्णु देवताय नम:' एवं ‘शंकर देवताय नम:' कह कर मंत्र उच्चारण करते हैं और उन तीन रेखाओं के ऊपर बिंदु की आकृति में चंदन का टीका लगाते हुए, ‘शिव परमात्माय नम:' उच्चारण करते हैं। ‘तैंतीस कोटि देवी देवताय नम:' तो कहा जाता है, परंतु ‘शिव देवताय' नहीं, हमेशा ‘शिव परमात्माय नम:' कहा जाता है। शिव ही सभी देव, मानव और धर्म आत्माओं के भी पिता, परमपिता *परमात्मा हैं।