ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News AstrologyMagh Purnima Restraint Shraddha Kalpavas end at Sangam Cay

Magh Purnima: संगम की रेती पर संयम,श्रद्धा  का कल्पवास समाप्त

अमृत से सिंचित और पितामह ब्रह्मदेव के यज्ञ से पवित्र  पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त स्वरूप सलिला के रूप में प्रवाहित  सरस्वती के संगम क्षेत्र में माघी पूर्णिमा स्नान के साथ ही एक...

Magh Purnima: संगम की रेती पर संयम,श्रद्धा  का कल्पवास समाप्त
एजेंसी,प्रयागराज Sat, 27 Feb 2021 01:46 PM
ऐप पर पढ़ें

अमृत से सिंचित और पितामह ब्रह्मदेव के यज्ञ से पवित्र  पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अन्त स्वरूप सलिला के रूप में प्रवाहित  सरस्वती के संगम क्षेत्र में माघी पूर्णिमा स्नान के साथ ही एक माह का  संयम, अहिंसा, श्रद्धा एवं कायाशोधन का कल्पवास भी समाप्त हो गया।

पुराणों और  धर्मशास्त्रों में कल्पवास को आत्मा शुद्धि और आध्यात्मिक  उन्नति के लिए जरूरी  बताया गया है। यह मनुष्य के लिए आध्यात्म की राह का  एक पड़ाव है जिसके जरिए स्वनियंत्रण एवं आत्मशुद्धि का प्रयास किया जाता  है। हर वर्ष श्रद्धालु एक महीने तक संगम के विस्तीर्ण रेती पर तंबुओं की  आध्यात्मिक नगरी में रहकर अल्पाहार, तीन समय गंगा स्नान, ध्यान एवं दान  करके  कल्पवास करते है।

हंडिया के टेला ग्राम निवासी रमेश  चतुर्वेदी संगम लोअर मार्ग पर शिविर में रहकर 20 साल से पत्नी के साथ  सेवा का कल्पवास कर रहे हैं। सेवा परमोधर्म : का भाव लेकर लोकतंत्र में धर्मतंत्र की स्थापना के लिए प्रयासरत है। इनका मानना है कि अकेला चना भाड़  नहीं तोड सकता लेकिन किसी को तो आगे बढ़कर प्रयास करना ही होगा। 

चतुर्वेदी ने बताया कि संगम क्षेत्र में एक माह तक जो भी आध्यात्मिक  ऊर्जा का अनुभव मिलता है, उसका वर्णन नहीं जा किया जा सकता केवल महसूस  किया जाता है। यह सौभाग्य अब फिर 11 माह बाद मिल सकेगा भी या नहीं कुछ नहीं  कह सकते। यह जरूर कह सकते है कि वह जब जिसे चाहेंगी। किसी भी परिस्थिति में  अपने पास बुला ही लेंगी।

    उन्होने बताया कि कल्पवास के पहले शिविर  के मुहाने पर तुलसी और शालिग्राम की स्थापना कर नित्य पूजा करते हैं।  कल्पवासी परिवार की समृद्धि के लिए अपने शिविर के बाहर जौ का बीज अवश्य  रोपित करता है। कल्पवास समाप्त होने पर तुलसी को गंगा में प्रवाहित कर देते  हैं और शेष को अपने साथ ले जाते हैं।  चतुर्वेदी ने बताया कि  भारत की आध्यात्मिक सांस्कृतिकए सामाजिक एवं वैचारिक विविधताओं को एकता के  सूत्र में पिरोने वाला माघ मेला भारतीय संस्कृति का द्योतक है। इस मेले  में पूरे भारत की संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। उन्होने बताया कि  शनिवार को माघी पूर्णिमा स्नान के साथ एक माह का कल्पवास समाप्त हुआ।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें