सक्सेस मंत्र: जटिल समस्या को सुलझाने के लिए छोटे-छोटे लक्ष्य बनाएं और उसका आसान हल खोजें
हर साल विश्व में साठ हजार से ज्यादा पार्किंसन बीमारी के मामले सामने आ रहे हैं। शख्सीयत मिलेहा सोनजी ने इस जटिल बीमारी का इलाज तो नहीं खोजा है, पर पार्किंसन बीमारी से जूझ रहे लोगों के जीवन स्तर को...
हर साल विश्व में साठ हजार से ज्यादा पार्किंसन बीमारी के मामले सामने आ रहे हैं। शख्सीयत मिलेहा सोनजी ने इस जटिल बीमारी का इलाज तो नहीं खोजा है, पर पार्किंसन बीमारी से जूझ रहे लोगों के जीवन स्तर को अपने सरल, पर असरदार डिजाइन प्रोडक्ट के जरिये बेहतर बनाने में मदद जरूर की है। उनका डिजाइन किया प्रोडक्ट ‘नो स्पिल कप' पीड़ित व्यक्ति को शारीरिक कंपकंपाहट की स्थिति में चाय-कॉफी पीने में राहत देता है। वहीं ‘इल्युजन स्टेयरकेस' बिना सहारे के घर पर चलने में मदद करता है।
कैसे हुईं प्रेरित
पुणे की रहने वाली मिलेहा सोनजी पेशे से एक स्ट्रेटजिक प्रोडक्ट डिजाइनर हैं। उन्होंने मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से डिजाइन की पढ़ाई की है। बाद में पढ़ाई के लिए वह नीदरलैंड भी गईं। वहां की डेल्फ यूनिवर्सिटी से स्ट्रेटजिक प्रोडक्ट डिजाइन में मास्टर की डिग्री अर्जित की। वह एक डिजाइनर के नजरिये से दुनिया की तमाम जटिल समस्याओं के समाधान खोजने के सपने देखती थीं। ऐसे समाधान, जो कई जटिल समस्याओं को सुलझाते हों। पर अकसर ऐसा होता नहीं है।
वह समझने लगीं कि छोटी-छोटी समस्याओं के समाधान खोजने से शुरुआत की जा सकती है। मिलेहा ने ऐसा ही किया, जब उन्होंने अपने अंकल को पार्किंसन बीमारी से जूझते हुए देखा। उन्हें अचानक एक प्रसन्नचित्त और ऊर्जा से भरपूर व्यक्ति को लोगों से मिलने से बचते हुए देख कर बुरा लगा। वह रोजाना के काम भी नहीं कर पा रहे थे। जैसे कंपकंपाहट की वजह से लोगों के बीच बैठकर चाय-कॉफी भी न पी पाना या बिना सहारे के चलने में मुश्किल होना।
मिलेहा ने उनकी स्थिति को लेकर कुछ करने के बारे में सोचा। उन्हें लगता था कि एक डिजाइनर के तौर पर वह इससे पीड़ित लोगों के रोजाना के छोटे-छोटे काम को आसान बनाने में मदद कर सकती हैं। उन्होंने अनुभवों से जाना कि कुछ नया रचने के लिए रिसर्च करना क्यों जरूरी है। और इसकी शुरुआत उन्होंने अपने अंकल से बीमारी से जुड़े सवाल पूछने के साथ की। उन्हें कंपकंपाहट की वजह से लोगों के बीच चाय-कॉफी पीने में शर्मिंदगी होती थी। मिलेहा ने यहां उनके लिए ‘नो स्पिल कप डिजाइन' किया, जो कंपकंपाहट की स्थिति में तरल को बाहर गिरने से रोकता है।
उन्हें लगा कि बीमारी को गहराई से समझने के लिए सवाल-जवाब से आगे बढ़ना पड़ेगा। उन्होंने अपने अंकल की रोजाना की गतिविधियों पर ध्यान देना शुरू किया। वह क्या देखती हैं कि जो व्यक्ति बिना सहारे के चल भी नहीं पा रहा था, वह सीढ़ियों पर बड़ी आसानी से चल पा रहा था। उन्होंने पाया कि वह गति में निरंतरता आने की वजह से चल पा रहे हैं। यानी उन्हें सीढ़ी पर चलने के एहसास को समतल जमीन पर लाना था। काफी प्रयोगों के बाद उनका ‘स्टेयरकेस इल्युजन' काम कर गया। ऑप्टिकल इल्युजन की वजह से इसको इस्तेमाल करने वाले मरीज इससे घर व अस्पतालों में सहजता से चल सकते हैं। अभिषेक नागर
हाई-टेक चीजें ही बेहतर नहीं होतीं। कुछ भी सरल, पर प्रभावशाली इस श्रेणी में आ सकता है। जरूरत है तो सिर्फ थोड़ी-सी उत्सुकता और मानवीय नजरिये की।
काम की बात
किसी भी जटिल समस्या को देख कर घबराएं नहीं। उसे छोटी-छोटी समस्याओं में तोड़ कर समझें और उनका सरल समाधान खोजने की कोशिश में लग जाएं।