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सक्सेस मंत्र : भगवान राम के इन गुणों से सीखें जीवन का मैनेजमेंट

जिंदगी में सफलता हासिल करने के लिए व्यक्ति के बाद उसके काम को लेकर बेहतर मैनेजमेंट का बहुत जरूरी है। और यह मैनेजमेंट हासिल करने के लिए व्यक्ति के पर रणनीति, मूल्य, विश्वास, प्रोत्साहन, श्रेय और...

सक्सेस मंत्र : भगवान राम के इन गुणों से सीखें जीवन का मैनेजमेंट
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीFri, 19 Oct 2018 06:47 AM
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जिंदगी में सफलता हासिल करने के लिए व्यक्ति के बाद उसके काम को लेकर बेहतर मैनेजमेंट का बहुत जरूरी है। और यह मैनेजमेंट हासिल करने के लिए व्यक्ति के पर रणनीति, मूल्य, विश्वास, प्रोत्साहन, श्रेय और पारदर्शिता होना बहुत जरूरी है। जब आप रामायण बढ़ेंगे या भगवान राम के जीवन को बारीकी से अध्यन करेंगे तो पाएंगे कि उनके पास ये सभी गुण मौजूद थे।

आम व्यक्ति भी अपने जीवन को सफल बनाने के लिए भगवान राम के जीवन से कुछ प्रेरणा ले सकता है। वह जिस तहर से समय और स्थिति को देखकर आगे की रणनीति बनाते थे उसे बड़े-बड़े मैनेजमेंट गुरू सीख लेते हैं। हम भगवान राम के 4 गुणों के बारे में बता रहे हैं जिनसे हर कोई सीख ले सकता है-

खुद एक मिसाल बनो-
भगवान राम को चूंकि दैवीय शक्ति प्राप्ति थी, तो वह चाहते तो कुछ भी एक इशारे में कर सकते थे। वह चाहते तो खुद को भगवान बताकर बुराईयां खत्म करने का अभियान चला सकते थे, लेकिन नहीं। उन्होंने हर काम एक आम व्यक्ति की भांति किया जिससे के लोग उनसे सीख सकें। भगवान राम ने खुद उस रास्ते पर चलकर दिखाया जिसे लोग आदर्श मानते थे। उन्होंने जिस तरह से हर काम किया लोग उसकी मिसाल देते हैं।


अपनी टीम को प्रोत्साहित करना-
तमिलनाडु के तट से श्रीलंका तक पुल बनाना उस वक्त इंसानों की बस की बात नहीं थी। हजारों, लाखों की संख्या में भी लोग पुल बनाते तो उसमें सालों लग जाते। लेकिन भगवान राम ने अपने बानर भालुओं को इस तरह से प्रोत्साहित किया उन्हें बहुत ही कम समय में पुल का निर्माण कर डाला। 

 

सामाजिक समानता -
भगवान राम चूंकि राज परिवार से थे। वे चाहते तो केवल या सबरी को बिना गले लगाए भी अपना वनवास गुजार सकते थे। लेकिन उन्होंने समाजिक समानता के लिए सबरी और के केवट को गले लगाया। ऐसा करने से उनके साथ लोगों में समानता का विश्वास पैदा हुआ।

शांति से लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना-
भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास मिला था जिसमें 12 साल उन्होंने चित्रकूट में ही बिता दिए। वह चाहते तो बाकी समय भी वहां बिता सकते थे। लेकिन माना जा रहा कि उस इलाके में आते जाते लोग उन्हें पहचानने लगे थे। जिससे उन्होंने चित्रकूट से दूर जाने का फैसला किया। यह उनकी शांति से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने की एक रणनीति ही थी।

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