ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News AstrologyKnow when Bahula Chaturthi which goddess deity is worshiped on this day

कब है बहुला चतुर्थी, जानें इस दिन किस देवी, देवता की होती है पूजा

भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी तिथि को बहुला चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। मां व संतान के प्रेम का प्रतीक यह व्रत इस बार 7 अगस्त को है। मां इस दिन व्रत रख अपनी संतान की रक्षा की प्रार्थना करती है। गाय को...

कब है बहुला चतुर्थी, जानें इस दिन किस देवी, देवता की होती है पूजा
पं. भानुप्रतापनारायण मिश्र,नई दिल्लीWed, 05 Aug 2020 10:35 AM
ऐप पर पढ़ें

भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी तिथि को बहुला चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। मां व संतान के प्रेम का प्रतीक यह व्रत इस बार 7 अगस्त को है। मां इस दिन व्रत रख अपनी संतान की रक्षा की प्रार्थना करती है। गाय को महाभारत के आश्वमेधिक पर्व में सर्वदेवमय कहा गया है। वे लोग, जिनकी संतान पर शनि की साढे़साती और शनि की ढैया चल रही है, उन्हें यह व्रत रखना चाहिए। सेहत ठीक न होने पर संतान से यह व्रत जरूर करवाना चाहिए। इस दिन गायों को हरा चारा अपने हाथ से जरूर खिलाना चाहिए। 

इस व्रत की एक कथा बहुत प्रचलित है। कृष्ण रूप में श्री हरि ने जब अवतार लिया, तब कामधेनु गाय भी कृष्ण सेवा करने के लिए बहुला नाम की गाय बनकर नंद बाबा के पास पहुंच गईं। कृष्ण बहुला को पहचान गए। एक बार कृष्ण ने बहुला की  परीक्षा लेने का निश्चय किया। एक दिन बहुला वन में थी, तभी वे सिंह रूप में प्रकट हो गए। बहुला उन्हें देख कर बोलीं,‘हे वनराज! मैं अपने बछड़े को दूध पिलाकर  आपका आहार बनने आ जाऊंगी।’ सिंह ने कहा,‘तुम वापस नहीं आईं, तो मैं भूखा रह जाऊंगा।’ तब बहुला गाय ने सत्य और धर्म की शपथ ली और कहा,‘मैं अवश्य वापस आऊंगी।’ 

सिंह ने बहुला को जाने दिया। बहुला अपने बछड़े को दूध पिलाकर वापस सिंह के पास आ खड़ी हुई। बहुला के धर्म और सत्य को देख श्रीकृष्ण सिंह रूप का त्याग कर अपने वास्तविक रूप में आ गए और कहा,‘हे बहुले! तुम परीक्षा में सफल हुईं। भाद्रपद कृष्ण चतुर्थी के दिन तुम्हारी पूजा होगी।’

ऐसे करें व्रत: इस दिन किसी भी प्रकार का अन्न- गेहूं एवं चावल से बना भोजन नहीं खाना चाहिए। शाम में गणेश जी, गाय और उसके बछड़े तथा शेर की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजा करनी चाहिए। इस दिन जो पकवान बनते हैं, उन्हीं का भोग गो माता को लगता है। भारत के कुछ भागों में जौ तथा सत्तू का भी भोग लगाया जाता है। फिर इसी भोग लगे भोजन को व्रती महिलाएं ग्रहण करती हैं। रात में चंद्रमा, गणेश व चतुर्थी माता को अघ्र्य देते हैं। बिना अघ्र्य के व्रत पूरा नहीं माना जाता। इस व्रत में गाय का दूध व उससे बने खाद्य पदार्थ नहीं खाने चाहिए। पांच, दस या सोलह बरस तक इस व्रत को करने के बाद ही इसका उद्यापन करना चाहिए। 
 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें