Pitrupaksha 2020: जानिए पितरों का तीन वृक्ष, पक्षी, पशु और जलचर से संयोग
धर्मशास्त्रों के अनुसार पितरों का पितलोक चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है। अग्निहोत्र कर्म से आकाश मंडल के समस्त पक्षी भी तृप्त होते हैं। पक्षियों के...
धर्मशास्त्रों के अनुसार पितरों का पितलोक चंद्रमा के उर्ध्वभाग में माना गया है। अग्निहोत्र कर्म से आकाश मंडल के समस्त पक्षी भी तृप्त होते हैं। पक्षियों के लोक को भी पितृलोक कहा जाता है। कुछ पितर हमारे वरुणदेव का आश्रय लेते हैं। वरुणदेव जल के देवता हैं। अत: पितरों की स्थिति जल में भी बताई गई है। ज्योतिषाचार्य पं.शिवकुमार शर्मा से जानिए तीन वृक्ष, पक्षी, पशु और जलचार के बारे में जो किसी ना किसी तरह हमारे पितरों से जुड़े हुए हैं।
तीन वृक्ष-:
पीपल: पीपल का वृक्ष बहुत ही पवित्र है। एक ओर जहां विष्णु का निवास है वहीं यह वृक्ष रूप में पितृदेव है। पितृ पक्ष में इसकी उपासना करना या इसे लगाना विशेष शुभ होता है।
बरगद: बरगद के वृक्ष में साक्षात शिव निवास करते हैं। अगर पितरों की मुक्ति नहीं हुई है तो बरगद के नीचे बैठकर शिव की पूजा करनी चाहिए।
बेल: यदि पितृ पक्ष में शिव के प्रिय वृक्ष बेल को लगाया जाए तो अतृप्त आत्मा को शांति मिलती है। अमावस्या के दिन शिव को बेल पत्र और गंगाजल अर्पित करने से सभी पितरों को मुक्ति मिलती है। अशोक, तुलसी, शमी और केले के वृक्ष की भी पूजा करनी चाहिए। ।
तीन पक्षी
कौआ: कौए को अतिथि आगमन का सूचना और पितरों का आश्रय स्थल माना जाता है। श्राद्ध पक्ष में कौओं का बहुत महत्व माना गया है। इस पक्ष मे कौओं को भोजन कराना अर्थात अपने पितरों को भोजन कराना माना गया है। शास्त्रों के अनुसार कोई भी क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में स्थित होकर विचरण करती हैं।
हंस: पक्षियों के हंस ऐसा पक्षी है जहां देव आत्माएं आश्रय लेती हैं। यह उन आत्माओं का ठिकाना हैं जिन्होंने अपने जीवन में पुण्यकर्म किए हैं और जिन्होंने यम-नियम का पालन किया है। कुछ काल तक हंस योनि में रहकर आत्मा अच्छे समय का इंतजार कर पुन: मनुष्य योनि में लौट आती है या फिर वह देवलोक में चली जाती है।
गरुढ़: भगवान गरुढ़ विष्णु के वाहन हैं। भगवान गरुड़ के नाम पर ही गरुढ़ पुराण है। इसमें श्राद्ध कर्म, स्वर्ग-नरक, पितृलोक का उल्लेख मिलता है। पक्षियों में गरुढ़ को बहुत ही पवित्र माना गया है। भगवान राम को मेघनाथ के नागपाश से मुक्ति दिलाने वाले गरुढ़ का आश्रय लेते हैं पितर।
तीन पशु
कुत्ता: कुत्ते को यम का दूत माना जाता है। कहते हैं कि इसे ईश्वर माध्यम की वस्तुएं भी नजर आती हैं। कुत्ता ऐसा प्राणी है जो भविष्य
में होने वाली घटनाओं और सूक्ष्म जगत की आत्माओं को देखने की क्षमता रखता है। कुत्ते को हिन्दू देवता भैरव का सेवक माना जाता है। कुत्ते को भोजन देने से भैरव प्रसन्न होते हैं और आकस्मिक संकट में वे भक्तों की रक्षा करते हैं। कुत्ते को रोटी देते रहने से पितरों की कृपा बनी रहती है।
गाय: गाय में सभी देवी-देवताओं का वास माना गया है। मान्यता के अनुसार आत्मा अंतिम योनि के रूप में गाय बनती है। गाय लाखों योनियों का वह पड़ाव है जहां आत्मा विश्राम करके आगे की यात्रा शुरू करती है।
हाथी: हाथी को हिन्दू धर्म में भगवान गणेश का साक्षात माना गया है। यह इंद्र का वाहन भी है। हाथी को पूर्वजों का प्रतीक भी माना गया है। जिस दिन किसी हाथी की मृत्यु हो जाती है उस दिन उसका कोई साथी भोजन नहीं करता। हाथियों को अपने पूर्वजों की स्मृतियां रहती हैं। अश्विन मास की पूर्णिमा के दिन गजपूजा का व्रत भी रखा जाता है। सुख-समृद्धि की इच्छा रखने वाले उस दिन हाथी की पूजा करते हैं।
तीन जलचर-:
मछली: भगवान विष्णु ने एक बार मत्स्य का अवतार लेकर मनुष्य जाति के अस्तित्व को जल प्रलय से बचाया था। श्राद्धपक्ष में चावल के लड़्डू बनाकर उन्हें जल में वसिर्जित कर दिया जाता है।
कछुआ: भगवान विष्णु ने कच्छप का अवतार लेकर ही देव और असुरों के लिए मदरांचल पर्वत को अपनी पीठ पर स्थापित किया था। हिन्दू धर्म में कछुआ बहुत ही पवित्र उभयचर जंतु माना गया है जो जल की सभी गतिविधियों को जानता है।
नाग: भारतीय संस्कृति में नाग की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि यह एक रहस्यमय जंतु है। यह भी पितरों का प्रतीक माना गया है।
ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)
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