इस तारीख से लग रहे हैं खरमास, महीने भर तक नहीं होंगे मांगलिक कार्य
सनातन धर्मावलंबियों के लिए खास महत्व के खरमास का शुभारंभ रविवार 16दिसंबर से शुरू हो जायेगा। इसके साथ ही शुभ कार्यों, मांगलिक कार्यों पर महीनेभर का विराम लग जायेगा। फिर नए वर्ष में 14 जनवरी को सूर्य...
सनातन धर्मावलंबियों के लिए खास महत्व के खरमास का शुभारंभ रविवार 16दिसंबर से शुरू हो जायेगा। इसके साथ ही शुभ कार्यों, मांगलिक कार्यों पर महीनेभर का विराम लग जायेगा। फिर नए वर्ष में 14 जनवरी को सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के बाद खरमास की समाप्ति होगी। सूर्य उत्तरायण हो जाएंगे और शुभ मांगलिक कार्य शुरू होंगे। खरमास में भी पितृपक्ष की तरह पितृ पिंडदान का महत्व है। .
सूर्य के धनु में रविवार को संक्रमण से खरमास
ज्योतिषाचार्य प्रियेंदू प्रियदर्शी नेविभिन्न पंचागों के हवाले से बताया कि रविवार को सूर्य धनु राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य के धनु में संक्रमण के साथ ही खरमास यानी अशुद्ध मास का शुभारंभ हो जायेगा। बनारसी,एनसी लाहिड़ी पंचांगों के अनुसार रविवार की सुबह 11.38 बजे सूर्य धनु राशि में प्रवेश करेंगे जबकि मिथिला पंचांगों के अनुसार रविवार की सुबह 7.31 बजे सूर्य का धनु में प्रवेश होगा। उनके अनुसार मिथिला पंचांग में भद्रामुख के हिसाब से समय निर्धारित की जाती है जबकि बनारसी पंचांगों में भद्रा पूछ के अनुसार। सूर्य ही संक्रांति और लग्न के राजा माने जाते हैं। इनकी राशि का परिवर्तन ही खरमास का द्दोतक है।
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ज्योतिषी इंजीनियर प्रशांत कुमार के अनुसार खरमास में कोई भी शुभ मांगलिक धार्मिक आयोजन नहीं होंगे। विवाह, नये घर में गृह प्रवेश, नये वाहन की खरीद, संपत्तियों का क्रय विक्रय, मुंडन संस्कार जैसे अनेक शुभ कार्यों को इस एक माह तक नहीं किया जायेगा । खरमास 14 जनवरी 2019 को सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही समाप्त हो जाएगा । सूर्य, गुरु की राशि धनु एवं मीन राशि में प्रवेश करता है तो इससे गुरु का प्रभाव समाप्त हो जाता है। शुभ मांगलिक कार्यों के लिए गुरु का पूर्ण बली अवस्था में होना आवश्यक है । कहा जाता है कि इस दौरान सूर्य मलिन अवस्था में रहता है। इसलिए इस एक माह की अवधि में किसी भी प्रकार के शुभ मांगलिक कार्य नहीं किये जाते। खासकर इस समय विवाह संस्कार तो बिलकुल नहीं किए जाते हैं क्योंकि विवाह के लिए सूर्य और गुरु दोनों को मजबूत होना चाहिए ।
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खरमास में पिंडदान की भी व्यवस्था
आचार्य विपेंद्र झा माधव के मुताबिक मार्कण्डेय पुराण में वर्ष में दो बार पिंडदानके महत्व के बारे में बताया गया है। आश्विन कृष्ण पक्ष(सितंबर-अक्टूबर) के साथ पूस मास(दिसंबर) के खरमास में भी पितृदेवता का पिंडदान किया जा सकता है। इससे पितृऋण से मुक्ति मिलती है। पूस मास में फल्गू नदी के किनारे पिंडदान किया जाता है।