करवा चौथ पर विशेष : मुरझाई जिंदगी के सफर को हमसफर ने प्रेम से महकाया
कैसे मिलेगा मुझे इंसाफ ये किसने फेंका मुझ पर तेजाब ... अब कैसे होगी मेरी शादी, क्या बनूंगी मैं किसी की शहजादी... कभी ऐसे ही सवालों से घिरी रहने वाली बेटियां आज अपनी हिम्मत और पति के साथ की...
कैसे मिलेगा मुझे इंसाफ ये किसने फेंका मुझ पर तेजाब ...
अब कैसे होगी मेरी शादी, क्या बनूंगी मैं किसी की शहजादी...
कभी ऐसे ही सवालों से घिरी रहने वाली बेटियां आज अपनी हिम्मत और पति के साथ की बदौलत खुशहाल जिंदगी जी रही हैं। करवाचौथ त्योहार है प्रेम का..सम्पूर्ण का...पति की दीर्घायु का। खुद मौत के मुंह से निकल जिदंगी को नए सिरे से शुरू करने वाली एसिड पीड़ित महिलाओं का करवाचौथ कुछ खास है। उनके हमसफर ने न सिर्फ उनका मुश्किल समय में हाथ थामा बल्कि उनकी मुरझाई जिंदगी के सफर को प्रेम से महकाया। ऐसे ही कुछ जोड़ों से पेश है खास बातचीत।
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दुनिया की फिक्र छोड़ एक हुए रूपाली-कुलदीप
पति-पत्नी का प्यार बढ़ता रहता है इसकी मिठास में कभी कमी नहीं आती है। जीवन की गाड़ी तब ही पटरी पर सही से चलती जब पति पत्नी दोनों एक दूजे का साथ दें और एक की कमी को दूजा पूरा करे...कुछ इस अंदाज में अपनी शादीशुदा जिंदगी के बारे में बताते हुए एसिड पीड़िता रूपाली विश्वकर्मा के पति कुलदीप कुमार ने कहीं। उन्होंने बताया कि जब मुझे रूपाली मिली तो पहली नजर में इनकी सादगी भोलेपन ने मुझे यह बता दिया कि यही मेरी जीवनसंगिनी है। जिसके बाद 2017 में हम दोनों ने दुनिया वालों की फिक्र किए बगैर शादी के बंधन में बंध गए। रूपाली बताती है कि पिछले दो साल से मैं करवाचौथ का व्रत रखती हूं और मेरे पति भी मेरे साथ व्रत खते हैं।
शादी तय होने के बाद हुआ अटैक, मगर साथ नहीं छोड़ा
रूह में जान अब भी बाकी है...
आत्मसम्मान मेरा अब भी बाकी है ...
मेरे होठों की मुस्कान अब भी बाकी है... आलमबाग की रहने वाली एसिड अटैक पीड़िता कविता ने कुछ इस अंदाज में अपने हौसले से भरे सफर की कहानी को बयां किया। उन्होंने बताया कि घर वालों की पसंद के लड़के से मेरी शादी तय हो चुकी थी जिसके दो महीने बाद ही मेरे साथ यह हादसा हुआ। एक ओर रिश्तेदार के ताने थे तो दूसरी ओर घरवालों को शादी टूटने का डर पर इन सभी शंकाओं के बादल से पर्दा हटाते हुए मेरे पति नितेश वर्मा ने मेरा हाथ थामा। मैं पिछले दो साल से करवाचौथ रह रही हूं यह त्योहार मेरा पंसदीदा त्योहार है।
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जिसने संभलना सिखाया वही जीवनसाथी भी बना
घटना के बाद पुरुषों से नफरत सी हो गई थी ....जो प्रेम भरे गानों को मैं गुनगुनाया करती थी उनको सुनना भी पसंद नहीं करती थी लेकिन कहते हैं कि बादल गहरे पर सूरज भी तो है...सागर गहरे पर नाव भी तो है। बस ऐसे ही पल में रानी की जिंदगी में सरोज ने दस्तक दी। वह बाताती हैं, मैं अस्पताल में पांच साल कोमा में रहने के बाद फिजियोथेरिपी के लिए खुद को तैयार कर रही थी पर मुझे क्या पता था जो मुझे एक बार फिर से चलना संभलना सीखा रहा है वह ही मेरा ताउम्र का साथी बन जाएगा। मेरी सगाई 2018 में हुई है और शादी अगले साल करूंगी पर मैं सरोज के लिए पिछले तीन सालों से करवाचौथ रह रही हूं ताकि जिसने मुझे मरने से बचाया अब मैं उसकी सुख शान्ति और लंबी उम्र की कामना कर सकूं।
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