कार्तिक माह विष्णु का माह माना जाता है। इस माह की पूर्णिमा का भी विशेष महत्व है। इस दिन भक्तजन पवित्र नदियों में स्नान के लिए जुटते हैं और देव दिवाली भी इसी दिन मनाई जाती है।
र्तिक मास को मंगल मास कहा गया है। इस पूरे माह में जल की प्रधानता होती है। ऋग्वेद के सातवें मंडल के सूक्त 49 में ऋषि वशिष्ट धरती के वासियों के लिए आह्वान करते हैं कि- दिव्य जल, आकाश से बारिश के माध्यम से प्राप्त होते हैं, जो नदियों में सदा गमनशील हैं, खोदकर जो कुुएं और तालाब से निकाले जाते हैं और जो सभी जगह प्रवाहित होकर पवित्रता बिखेरते हुए समुद्र की ओर जाते हैं, वे दिव्यतायुक्त पवित्र जल हमारी रक्षा करें।
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कार्तिक पूर्णिमा को श्रीहरि ने प्रलय काल में चार वेदों की रक्षा के लिए मत्स्यावतार लिया था। इसी पूर्णिमा के दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया और त्रिपुरारी के नाम से जाने गये। इसी पूर्णिमा के दिन बैकुंठधाम में श्रीतुलसी का प्रकाट्य हुआ। देवी तुलसी का पृथ्वी पर जन्म हुआ। इसलिए इस दिन भी तुलसी जी की अराधना करना चाहिए।
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शरद पूर्णिमा के बाद चंद्रमा से निकलने वाली अमृतदायी किरणों का प्रभाव पूरे कार्तिक मास में रहता है। चंद्रमा की मधुरिमा से सरोवर, सरिता और जलकुंड में एक शक्ति का संचयन होता है। इस कारण कार्तिक मास में जलस्नान का विधान है। कुछ वर्षों तक गांवों एवं उपनगरीय क्षेत्रों में पूरे कार्तिक में गंगा, यमुना, कावेरी आदि नदियों में स्नान की परिपाटी थी। याद है कि गांव में माताएं गंगा स्नान करने जाते हुए गुनगुनातीं-कार्तिक मास हे सखि पुण्य महिनवा हे, सब सखि गंगा स्नान हे, पाट पटंबर हम धनि, लुगड़ी पुरान हे।
यह महीना वैशाख और माघ की तरह स्नान, ध्यान और जप तथा अनुष्ठान का मास है। इस महीने कहीं श्रीमद्भागवत कथा, कहीं रासलीला, कहीं चकई-चकवा का खेल, कहीं तुलसी चौरा पर दीप रखना तो कहीं कीर्तन-भजन का समागम होता है। श्रीमद्भागवत में इस महीने को शरत्काव्य कथारसाश्रय का महीना कहा गया है, जहां श्रीकृष्ण को भी गोपियों से चुनौती मिलती है। कार्तिक मास के जलस्नान और अंतर्यात्रा के बाद व्यक्ति अपनेे अंदर ऊर्जा अनुभव करता है। जीवन जब पानी की तरलता में एवं समाज की सघनता में समग्रता को अनुभव करता है, तो भीतर जागरण का बोध होता है।
डॉ. मयंक मुरारी