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कार्तिक मास में जल में निवास करते हैं श्री हरि, सूर्योदय से पहले स्नान से मिलता है पुण्य

शरद पूर्णिमा के बाद से कार्तिक का महीना लग जाएगा। इस मास में श्री हरि  जल में ही निवास करते हैं।  जल के तीन कर्मकांडों में स्नान महत्वपूर्ण कर्मकांड है। पुलस्त्य ऋषि ने कहा भी है कि स्नान...

कार्तिक मास में जल में निवास करते हैं श्री हरि, सूर्योदय से पहले स्नान से मिलता है पुण्य
पं. भानुप्रतापनारायण मिश्र,नई दिल्लीSat, 31 Oct 2020 03:12 PM
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शरद पूर्णिमा के बाद से कार्तिक का महीना लग जाएगा। इस मास में श्री हरि  जल में ही निवास करते हैं।  जल के तीन कर्मकांडों में स्नान महत्वपूर्ण कर्मकांड है। पुलस्त्य ऋषि ने कहा भी है कि स्नान के बिना न तो शरीर निर्मल होता है और न ही बुद्धि। धर्मशास्त्रों में माघ, वैशाख और कार्तिक में नित्य स्नान का जो विधान दिया गया है, उसके पीछे का उद्देश्य शरीर की शुद्धता ही है। पवित्र नदी, समुद्र, सरोवर, कुआं और बावड़ी जैसे प्राकृतिक जल स्रोतों में किया गया स्नान तो अति पावन माना गया है।

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महाभारत में महर्षि वेदव्यास ने स्पष्ट रूप से प्रथम पूज्य गणेश से लिखवाया है कि कृष्ण, स्नान-ध्यान-दान आदि कर उसी समय निकलते थे, जब सूर्योदय की पहली किरण धरती पर पड़ती थी। मदनपारिजात के अनुसार कार्तिक मास में जिते्द्रिरय रहकर नित्य स्नान करें। चांद-तारों की मौजूदगी में सूर्योदय से पूर्व ही पुण्य प्राप्ति के लिए स्नान करना चाहिए। जौ, गेहूं, मंूग, दूध-दही और घी आदि का भोजन करें, इससे सब पाप नष्ट हो जाते हैं।  स्नान के लिए तीर्थराज प्रयाग, अयोध्या, कुरुक्षेत्र और काशी को श्रेष्ठ माना गया है। इनके साथ ही सभी पवित्र नदियों और तीर्थस्थलों पर भी स्नान शुभ रहता है। अगर आप इन स्थानों पर नहीं जा सकते, तो इनका स्मरण करने से भी लाभ होता है।

इसके लिए एक श्लोक भी प्रचलित है- गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति। नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् संनिधिं कुरु।। 
स्नान करते समय- आपस्त्वमसि देवेश ज्योतिषां पतिरेव च। पापं नाशाय मे देव वामन: कर्मभि: कृतम। बोल कर जल की ओर दु:खदरिद्रयनाषाय श्रीविश्णोस्तोशणाय च। प्रात:स्नान करोम्यद्य माघे पापविनाषनम।।  कहकर परमपिता परमेश्वर की स्तुति करनी चाहिए। स्नान जब समाप्त हो जाए तो- सवित्रे प्रसवित्रे च परं धाम जले मम। त्वत्ेतजसा परिभ्रश्टं पापं यातु सहस्त्रधा।। से सूर्य की अर्ध्य देकर श्री हरि का पूजन करना बहुत अच्छा रहता है। नदी में स्नान नहीं कर सकते, तो रातभर छत पर रखे तांबे या मिट्टी के बरतन में भरे जल से स्नान करना भी शुभ रहता है। हां, इस माह लहसुन, प्याज और मांसाहर का सेवन न करें। ब्रह्मचर्य का नियम मानते हुए भूमि शयन करना चाहिए।

विशेष:  शनि की साढ़ेसाती जिन राशियों-धनु, मकर और कुंभ पर तथा शनि की ढैय्या-मिथुन, तुला है, और इनमें भी जिनका शनि अपनी नीच राशि मेष में है, उन्हें तो अवश्य ही ब्रह्ममुहूर्त यानी अमृतवेला में स्नान कर श्री हरि का जाप करना चाहिए।

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