कन्या संक्रांति : सूर्यदेव की करें उपासना, अनुकूल समय की होगी शुरुआत
भगवान भास्कर एक राशि में एक माह रहते हैं। भगवान सूर्यदेव का सिंह राशि से कन्या राशि में गोचर करना कन्या संक्रांति कहलाता है। इस संक्रांति को स्नान, दान और पितरों के तर्पण के लिए बहुत शुभ माना जाता...
भगवान भास्कर एक राशि में एक माह रहते हैं। भगवान सूर्यदेव का सिंह राशि से कन्या राशि में गोचर करना कन्या संक्रांति कहलाता है। इस संक्रांति को स्नान, दान और पितरों के तर्पण के लिए बहुत शुभ माना जाता है। कन्या संक्रांति को अनुकूल अवधि की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। सूर्यदेव के अश्विन माह में राशि परिवर्तन करने के कारण इस संक्रांति को अश्विन संक्रांति नाम से भी जाना जाता है। संक्रांति का पुण्यकाल विशेष माना जाता है और इस पुण्यकाल में पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है।
हर संक्रांति का अपना अलग महत्व होता है। कन्या संक्रांति भी अपने आप में विशेष है। कन्या संक्रांति के अवसर पर भगवान विश्वकर्मा की उपासना की जाती है। भगवान विश्वकर्मा की उपासना से कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। कार्यक्षेत्र और व्यापार में आने वाली परेशानियां दूर हो जाती है। धन और वैभव की प्राप्ति होती है। कन्या संक्रांति पश्चिम बंगाल और ओडिशा राज्य में विशेष रूप से मनाई जाती है। मान्यता है कि अगर कन्या संक्रांति के दिन पूरे विधि विधान के साथ सूर्यदेव की पूजा अर्चना की जाए तो जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। कन्या संक्रांति पर जरूरतमंद लोगों की सहायता अवश्य करें। सूर्यदेव बुध प्रधान कन्या राशि में जाएंगे। इस तरह कन्या राशि में बुध और सूर्य का मिलन होगा। इससे बुधादित्य योग का निर्माण होगा।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।